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________________ ३. प्राकाश-युद्ध जब विमलकुमार लतामण्डप के दूसरे भाग में वामदेव के साथ बात कर रहा था, स्त्री-पुरुष के जोड़े को देखकर उनके लक्षणों पर विवेचन कर रहा था तभी वहाँ एक अनोखी घटना घट गई, जिससे उनकी बातें वहीं बन्द हो गईं।* क्या घटना घटित हुई ? सुनिये - मिथुन-युगल पर प्राक्रमरण मैंने देखा कि आकाश में सूर्य के समान तेजस्वी अति भयंकर दो पुरुष हाथों में नग्न तलवार लिये हुए लतागृह की ओर तेजी से आ रहे हैं। [१६८] विमल की बात वहीं छोड़कर मैंने आश्चर्यान्वित होकर उसका ध्यान उस तरफ आकर्षित करने के लिये कहा-कुमार! कुमार !! देखो। अभी तक विमलकुमार की दृष्टि कोमल कमल के पत्तों में स्थिर थी, उसने यह दृश्य देखने के लिये तुरन्त अपनी दृष्टि घुमायी और दृश्य देखकर वह सोचने लगा कि एकाएक यह क्या हो गया ? उसी समय आकाश से आने वाले दोनों पुरुष लतागृह के ऊपर मंडराने लगे और उनमें से एक पुरुष बोला -- अरे पुरुषाधम ! निर्लज्ज ! तू कहीं भी भाग या छप, तुझे छोडूगा नहीं। अतः अब तू इस संसार को अन्तिम बार देख ले और अपने इष्टदेव का स्मरण करले या अपना पराक्रम बतला। यों चोर की तरह छुपकर क्यों बैठा है ? आकाश में युद्ध ऐसे तिरस्कार युक्त अति कठोर और युद्ध को निमन्त्रण देने वाले वचन सुनकर लतागृह के युगल में से पुरुष ने स्त्री से कहा- 'सावधान होकर जरा धैर्य से रहो ।' ऐसा कहकर स्त्री को लतागृह में छोड़कर उन आने वाले दोनों पुरुषों से बोला-'रे ! मेरे विषय में तुमने जो कुछ कहा है उसे भूल मत जाना, अब देखें कौन भागता है और कौन छूपता है।' यों कहकर उसने अपनी तलवार म्यान से खींची और कटूक्तिपूर्ण अपशब्द बोलने वाले पर झपटा। आकाश में इन दोनों का दारुण और विस्मयकारक युद्ध हुआ। तलवारें और ढालें खड़खड़ाने लगी, शस्त्रों की खनखनाहट और योद्धाओं के सिंहनाद से युद्ध का दृश्य भीषणतम हो * पृष्ठ ४७६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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