SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 790
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताव ५ : माया और स्तेय से परिचय माया और स्तेय के परिचय का प्रभाव ___ माया और स्तेय के परिचय के परिणामस्वरूप मेरे मन में जो विचार-तरंगे उठने लगीं उन्हें संक्षेप में तुम्हें बतलाता हूँ। मैं समझने लगा कि माया जैसी बहिनऔर स्तेय जैसे भाई को प्राप्त कर मैं सचमुच कृतकृत्य हुआ हूँ, मेरा जन्म सफल हो गया है । ऐसे भाई-बहिन तो भाग्य से ही प्राप्त होते हैं। उसके साथ विलास करते हुए मेरी चेतना भ्रमित होने लगी और मन में अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क के झंझावात उठने लगे। माया के प्रभाव से मैं समग्र विश्व को ठगने की सोचने लगा। विविध प्रपंचों से लोगों को शीशी में उतारने की कामनायें करने लगा। स्तेय के प्रभाव से मेरे मन में विचार उठा कि मैं दूसरों का सब धन चुरा लू या उठा लाऊं। भद्रे! तभी से मैं निःशंक होकर लोगों के साथ ठगी करने के और लोगों का धन-हरण कर लेने के काम में व्यस्त हो गया। मेरे मित्रों और रिश्तेदारों ने भी मुझे पहचान लिया और मेरे ऐसे कुत्सित कार्यों को देखकर वे मुझे तृण के समान तुच्छ समझने लगे। [५६-६४] विमल के साथ मैत्री __इधर वर्धमान नगर के महाराजा धवल की पटरानी कमलसुन्दरी के साथ मेरी माता कनकसुन्दरी का सम्बन्ध प्रिय सहेली (बहिन) जैसा था और उन दोनों में आपस में घनिष्ठ स्नेह था। दोनों माताओं के सम्बन्ध के कारण पटरानी के पुत्र कपटरहित, स्वच्छ हृदय, वात्सल्यप्रिय विमल के साथ मेरा भी मैत्री-भाव स्थापित हो गया । अर्थात् हम एक दूसरे के इष्ट मित्र बन गये। विमलकुमार सर्वदा दूसरों का उपकार करने में तत्पर रहता था। उसका मन स्नेह से ओतप्रोत था और वह एक महात्मा जैसा दिखाई देता था। किसी भी प्रकार के मनमुटाव या दावपेचरहित वह मेरे साथ प्रमुदित होकर प्रेम से रहता था। जबकि विमल मुझ पर एकनिष्ठ सच्चा स्नेह रखता था, तब माया के प्रताप से मेरा हृदय कुटिलता का घर बन गया था, इसी कारण मैं अपने मन में उसके प्रति दुर्भाव रखता था। मैं उसके प्रति स्नेह में सच्चा नहीं था और विमल जैसे पवित्र महात्मा के प्रति भी मन में मलिनता रखता था । अर्थात् विमलकुमार सच्चा शुद्ध सात्विक प्रेम रखता था और मैं उसके प्रति कपट-मैत्री रखता था । ऐसी विचित्र परिस्थिति में भी शुद्ध प्रेम और कपट-मैत्री के बीच झूलते हुए, हम दोनों ने अनेक प्रकार की क्रीडा करते हुए, आनन्द करते हुए और सुखोपभोग करते हुए अनेक दिन बिताये । [६५-६६] ___महात्मा विमल ने कुमारावस्था में ही एक श्रेष्ठ उपाध्याय के पास जाकर उनसे सब प्रकार की कलाओं का अभ्यास कर लिया। क्रमशः वह युवतियों के नेत्रों को आनन्दित करने वाले कामदेव के मन्दिर के समान और लावण्य* समुद्र की आधारशिला सदृश तरुणावस्था को प्राप्त हुआ। [७०-७१] * पृष्ठ ४७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy