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उपमिति भव-प्रपंच कथा
जोर देकर विस्फारित नेत्रों से देखने पर परिवार दिखाई देते हैं तो राजा दिखाई नहीं देते। आपने तो प्रत्येक राजा और उसके परिवार ( अनुचरों) का नाम तथा गुणों का अलग-अलग वर्णन किया है । इसमें क्या यथार्थता है ? वह समझाइये | [ ५३५-५३९ ] विमर्श - वत्स ! इसमें विस्मय जैसी क्या बात है ? जैसे तू एक ही समय में राजा और उसके परिवार को एक साथ नहीं देख सकता वैसे ही अन्य भी कोई उन्हें एक साथ नहीं देख सकता । क्योंकि, इन दोनों को जानने वाले समझते हैं कि दोनों एक ही समय में एक साथ नहीं रहते, किन्तु उस समय मन में ऐसा भाव होता है कि राजा है तो उसका परिवार भी है । देख, श्रावरण रहित ज्ञान वाले सर्वज्ञ केवली भी यह जानते हैं कि ये राजा और उनका परिवार एक ही समय में एक साथ नहीं रहते, क्योंकि ये सातों राजा सामान्य हैं और उनका परिवार विशिष्ट है । जिस प्रकार अवयव को धारण करने वाला अवयवी यहाँ सामान्य है और उसके अवयव विशेष हैं वैसे ही ये सातों राजा अंश को धारण करने वाले अंशी हैं और उनके परिवार उन्हीं के अंश के रूप हैं । सामान्य और विशेष किसी को एक ही समय में एक ही साथ दिखाई नहीं दे सकते, क्योंकि यह इनका स्वभाव ही है । इनमें देश, काल या स्वभाव से किसी भी प्रकार का भेद नहीं है, दोनों तादात्म्यरूप ( एकरूप ) होकर साथ में रहते हैं, अतः वे दोनों एकरूप ( श्रभिन्न) ही प्रतिभासित होते हैं । यही कारण है कि भैया ! तुझे दोनों एकरूप में दृष्टिगोचर हो रहे हैं । [५४०-५४५]
इस विषय में मैं तुझे एक दृष्टान्त देकर समझाता हूँ । मानों कि एक जंगल है। उसमें घावड़े, ग्राम और खैर के वृक्ष हैं । अब ये धावड़े, ग्राम या खैर वृक्ष से भिन्न तो नहीं है, अर्थात् वृक्ष हैं तो धावड़े आदि हैं और घावड़े आदि हैं तो वृक्ष हैं। दोनों वैसे अभिन्न हैं, पर एक समय सामान्य वृक्ष पर लक्ष्य रहता है तो दूसरे समय धावड़े, आम आदि विशेष पर लक्ष्य रहता है । जैसे, श्रुतस्कन्ध के बिना अध्ययन नहीं हो सकते और अध्ययन के बिना श्रुतस्कन्ध नहीं हो सकता । बिना प्रकरण के पुस्तक नहीं हो सकती । (पुस्तक है तो प्रकरण भी होंगे और प्रकरण हैं तो पुस्तक भी होगी ) । बात इतनी ही है कि एक ही समय में दोनों का बोध एक साथ हो नहीं सकता । यह नहीं कि वे शास्त्र रूप या प्रकरण रूप में दिखाई ही नहीं देते, परन्तु भिन्न-भिन्न समय की अपेक्षा को ध्यान में रखकर देखें तो दोनों ही दिखाई देते हैं । अर्थात् एक समय शास्त्र दिखाई देता है तो एक समय प्रकरण, पर दोनों एक साथ दिखाई नहीं दे सकते । जब वस्तु के सामान्य रूप पर ध्यान होता है तब विशेष रूप अदृश्य हो जाता है और जब विशेष रूप पर ध्यान होता है तब सामान्य रूप अदृश्य हो जाता है । [५४६-५४८]
जंगल को दूर से देखने पर सामान्य रूप में वृक्षों के झुण्ड ही दिखाई देंगे, उसमें घ।वड़े आम या खैर न तो दिखाई ही देंगे और न उन्हें भिन्न-भिन्न रूप
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