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________________ प्रस्ताव : ४ मकरध्वज ५११ प्रकर्ष ! यह मकरध्वज इन तीनों पुरुषों को आगे कर संसार में प्रवृत्ति करता है । यह इतना अतुल बली है कि तीनों जगत् के अन्य मनुष्य इसके बल की कल्पना भी नहीं कर सकते । [३५४-३५६] मकरध्वज को पत्नी रति मकरध्वज के पास ही जो कमलनयनी रूप-सौभाग्य की मन्दिर, अत्यधिक सुन्दर प्रिय स्त्री बैठी है वह उसकी पत्नी रति है। जिन लोगों को मकरध्वज ने अपने पराक्रम से जीत लिया है उनके मन में यह स्वाभाविक रूप से सूखोपभोग की बुद्धि उत्पन्न करती है। वास्तव में तो मकरध्वज से पराजित एवं वशीभूत होकर वे लोग दुःख भोग रहे होते हैं। परन्तु, यह रति उनके मन में इस बात को पुष्ट कर देती है कि जिससे उन्हें ऐसा आभास होता है कि वे बहुत ही आह्लादकारी सुख का उपभोग कर रहे हैं और यह मकरध्वज हमारा हितकारी है। जो कामदेव के विरुद्ध काम करते हैं उन्हें सुख को प्राप्ति कैसे हो सकती है ? लोगों के मन में ऐसी मान्यता यह रति ही उत्पन्न करती है । भैया ! यह रति लोगों के मन को इतना वश में कर लेती है कि वे निरपवाद रूप से मकरध्वज के दास के समान बन जाते हैं और उसके निर्देशानुसार चलकर अनेक प्रकार की विडम्बनायें प्राप्त करते हैं। इससे विवेकशील पुरुषों की दृष्टि में वे हँसी के पात्र बनते जाते हैं। मूढात्मा लोग इसके वश में होकर कैसे कैसे विचित्र रूप धारण करते हैं और विडम्बनाएं उठाते हैं, उसके कुछ उदाहरण देता हूँ जिन्हें सुनकर तुम भी आश्चर्य में पड़ जाओगे । स्त्रियों के चित्त को प्रसन्न करने के लिये सुन्दर वस्त्र पहनते हैं, स्त्रियों को मोहित करने के लिये बहुमूल्य आभूषण धारण करते हैं, स्त्रियाँ जब कटाक्ष द्वारा चपल आँख झपका कर अर्धनिमीलित नेत्र से उसकी तरफ एकटक देखती हैं तब वे बहुत प्रसन्न होते हैं । जब स्त्रियाँ उनके साथ मधुरालाप (मधुर सम्भाषण) करती हैं तब उनके प्रति मन में बहुत प्रेम उत्पन्न होता है और हृदय हर्ष-विभोर हो जाता है। अकड़ के साथ शरीर को कठोर बना कर, गर्दन ऊंची कर, सुदृढ़ कदम रखता हुआ, अपनी जवानी का प्रदर्शन करता हुआ चलता है और स्त्रियाँ जब उसे देख कर उसकी तरफ कटाक्ष बाण फेंकती है तब अपने को महान भाग्यशाली मानकर घमण्ड से फूल कर कुप्पा हो जाता है। कुलटा (व्यभिचारिणी) स्त्री को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये काम-लम्पट मोहान्ध पुरुष बिना कारण हाथ-पाँव और आँखों से अनेक प्रकार के इशारे करता है, छेड़खानी करता है, मुह से सीटी बजाता है, ताने मारता है, गाने गाता है और इधर-उधर भाग दौड़ कर अपना पराक्रम बताता है । इस प्रकार उसके मन को अनुकूल बनाने के लिये ऐसे कौन से कार्य हैं जिन्हें वह नहीं करता हो ? स्त्री की चाटुकारिता (खुशामद) करता है, उससे नौकर के समान बात करता है, उसके * पृष्ठ ३७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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