SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा हुआ हो ऐसा सच्चा परोपकारी था। इस विचक्षण कुमार का अधिक वर्णन क्या करू ? संक्षेप में कहूँ तो मनुष्य के जिन समस्त सद्गुणों का वर्णन अनेक स्थलों पर किया जाता है, वे सभी सद्गुरण इस विचक्षण कुमार में विद्यमान थे। [१६-२३] जड़ अशुभोदय का पुत्र जड़ कुमार भी बड़ा होकर कैसा हआ, यह भी सुनिये। वह विपरीत मन वाला, सत्य-पवित्रता और संतोष से रहित, मायावी, चुगली खाने वाला, नपुंसक जैसा, साधुओं की निन्दा करने वाला, झूठी प्रतिज्ञा करने वाला, पापात्मा-गुरु और देव की कदर्थना करने वाला, असत्यवादी लोभान्ध, दूसरों के चित्त को भेदन करने (दुखाने) वाला, मन में कुछ और कार्य में कुछ, अर्थात् मन वचन और कार्य में असमानता वाला, अन्य की सम्पत्ति से जलने वाला, अन्य की विपत्ति में आनन्द मनाने वाला, अभिमान से फूलकर कुप्पा बना हुअा, निरन्तर क्रोध में भड़भड़ाने वाला, दांत किटकिटाकर बोलने वाला, सर्वदा अपनी बड़ाई करने वाला और राग-द्वेष के वश में रहने वाला था। अर्थात् वह समस्त दुगुणों का पिटारा था। संक्षेप में कहूँ तो अधम से अधमतम दुर्जन में जिन-जिन दोषों की कल्पना की जा सकती है वे सभी दोष इस जड़ कुमार में विद्यमान थे। ! २४-२६] इन विचक्षरण कुमार और जड कुमार का अपने-अपने महलों में सुख पूर्वक पालन-पोषण होता रहा और क्रमश: वृद्धि प्राप्त करते-करते ये दोनों युवावस्था को प्राप्त हुए। [३०] विचक्षण का बुद्धि के साथ लग्न विश्व प्रसिद्ध गुरण-रत्नों का उत्पत्ति स्थान निर्मलचित्त नामक एक सर्वोत्तम नगर है । इस अन्तरंग नगर में मलक्षय नामक राजा राज्य करते हैं । ये राजा अनेक सद्गुण रूपी रत्नों को जन्म देने और उन रत्नों का पालन (वृद्धि) करने वाले हैं। इनके सर्वांगसुन्दरी सद्गुण रूपी रत्नों की वृद्धि करने वाली अत्यन्त मनभावनी सुन्दरता नामक पटरानी है । समय के परिपक्व होने पर इनको कमलपत्र के समान नेत्रों वाली, गुणों की भण्डार, रूपवती और कुल के यश को बढ़ाने वाली बुद्धि नामक पुत्री उत्पन्न हुई । युवावस्था प्राप्त होने पर राजा-रानी ने अपनी पुत्री बुद्धि को स्वयंवर के लिये उसके अनुरूप रूप और गुण वाले विचक्षण कुमार के पास भेजा। बद्धि ने भी कुमार का भलीभाँति परीक्षण कर स्वेच्छा से उसका वरण किया। विचक्षरण कुमार ने हर्षपूर्वक और आडम्बर महोत्सव के साथ सुशोभना बुद्धि के साथ पाणिग्रहण किया । उस सद्गुरणशील पत्नी पर कुमार का अतिशय हार्दिक प्रेम था। [३१-३६] विमर्श-प्रकर्ष विचक्षण कुमार अपनी पत्नी बुद्धि के साथ शुभकर्मों के कारण अनेक * पृष्ठ ३२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy