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________________ ३८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा इसके तीन रूपान्तर आज मिलते हैं-(१) नेपाल के बुद्धस्वामी रचित 'बृहत्कथा-श्लोक-संग्रह' (८ वीं, ६ वीं ई. शती)। यह रचना भी आज अंशतः उपलब्ध है। इसके वर्तमान स्वरूप में २८ सर्ग और ४५२४ पद्य हैं । इसकी भाषा में, कहीं-कहीं पर प्राकृत स्वरूप दिखलाई देता है, जिससे यह सम्भावना अनुमानित होती है कि ये अंश मूल ग्रन्थ से लिये गये होंगे। (२) काश्मीर के राजा अनन्त के आश्रय में रहने वाले कवि क्षेमेन्द्र द्वारा रचित-'बृहत्कथामञ्जरी' (१०३७ ई०) । इसमें ७,५०० श्लोक हैं । (३) सोमदेव कृत 'कथासरित्सागर' (१०६३-१०८१ ई०) में १२४ तरंगें और २०२०० पद्य हैं। इसके सरस पाख्यान मनोरंजक हैं और हृदयंगम शैली में लिखे गये हैं। ग्रन्थकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसकी रचना का आधार गुणाढ्य की बृहत्कथा है ।। कथा-सरित्सागर, विश्व का विशालतम कथासंग्रह ग्रन्थ है। कीथ, बुद्धस्वामी के 'बृहत्कथा-श्लोक-संग्रह' को गुणाढ्य की रचना का विशुद्ध रूपान्तर मानते हैं। काश्मीर की जनश्रुति के अनुसार यह श्लोकबद्ध थी। किन्तु दण्डी ने, इसको गद्यमय बतलाया है। बृहत्कथा, भारतीय साहित्य में उपजीव्य ग्रन्थ के रूप में समादृत है । इस दृष्टि से, इसे रामायण और महाभारत के समकक्ष माना जा सकता है। 'वैताल पञ्चविंशतिका' भी बृहत्कथामंजरी और कथासरित्सागर की पद्धति पर लिखी गई रचना है । इसमें, एक वैताल ने उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य को, पहेलियों के रूप में 25 कथाएँ सुनाई हैं। ये, मनोरंजक होने के साथ-साथ विशेष कौतूहल पूर्ण भी हैं। इसके दो संस्करण उपलब्ध होते हैं- १. शिवदास कृत संस्करण (१२०० ई०) गद्य-पद्यात्मक है। और २. जम्भलदत्त का केवल गद्यमय है। 'सिंहासन द्वात्रिशिका' भी इसी शैली और परम्परा की रचना है । इसके कथानक में, विक्रम के सिंहासन की बत्तीस पुत्तलिकाएं, राजा भोज को एक-एक कहानी सुनाती जाती हैं और कहानी सुनाने के बाद उड़ जाती हैं । इस रचना के दो उपनाम-'द्वात्रिंशत्पुत्तलिका' और 'विक्रमचरित' मिलते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकारों वाले इसके तीन अलग-अलग संस्करण प्राप्त होते हैं। इनमें से एक गद्य में, दूसरा १. प्रणम्य वाचं निःशेषपदार्थोद्योतदीपिकाम् । बृहत्कथायाः सारस्य संग्रहं रचयाम्यहम् ।। -बृहत्कथासार-पृष्ठ-१, पद्य-३. २. काव्यादर्श-१/२३, ६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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