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प्रस्तावना
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की महादेवी', गोर संदीव मुनि', और सुभग ग्वाला आदि के पाख्यान मुख्य हैं । इनका विस्तृत वर्णन हरिषेण और प्रभाचन्द्र ने भी अपने-अपने कथानकों में किया है।
समन्तभद्र स्वामी का 'रत्नकरण्ड-श्रावकाचार' आख्यानों का भण्डार है । इसमें अंजन चोर, अनन्तमती, उद्दायन, रेवती, जिनेन्द्रभक्त, वारिषेण, विष्णुकुमार, और वज्रकुमार आदि के प्राख्यानों से ज्ञात होता है कि ये सब, सम्यक्त्व के प्रत्येक अङ्ग का परिपूर्ण पालन करने के लिये विख्यात थे। इनके अलावा कुछ ऐसे व्यक्तियों के आख्यान भी इसमें मिलते हैं, जो व्रतों का पालन करते हुए भी, पापाचरण के लिये प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे । इसी में, उस मेंढक की भी प्रसिद्ध कथा वरिणत है, जो महावीर के दर्शन के लिए निकलता है, किन्तु रास्ते में ही श्रेणिक के हाथी के पैर के नीचे दब कर मर जाता है । और, तुरन्त महद्धिकदेव का स्वरूप प्राप्त कर लेता है।
पौराणिक साहित्य के अन्तर्गत, आदिपुराण (जिनसेनाचार्य), उत्तरपुराण (गुरणभद्र), महापुराण (अपभ्रंश, पुष्पदन्त) आदि विभिन्न पुराणों में, तथा 'धर्म शर्माभ्युदय' और 'जीवन्धरचम्पू' (दोनों हरिचन्द), चन्द्रप्रभचरित (वीरनन्दि), यशस्तिलकचम्पू (सोमदेव), हरिवंश (जिनसेन), पद्मचरित (रविषेण), पुरुदेवचम्पू (अर्हद्दास) एवं गद्यचिन्तामणि (वादीभसिंह) आदि विभिन्न महाकाव्यों/चरितकाव्यों में पाये जाने वाले पाख्यान तथा कथायें, जैनधर्म-कथानों की महनीयता को सिद्ध करते हैं । तमिल और कन्नड़ भाषा के जैन साहित्य में भी, भारतीय आख्यान-साहित्य की अनुपम निधि भरी पड़ी है।
भारतीय आख्यान साहित्य में 'नीतिकथा' साहित्य का विशेष स्थान है। संस्कृत साहित्य की नीतिकथाओं ने, विश्व के कथा साहित्य में अपना स्थान विशेष ऊंचा बना लिया। क्योंकि, वे, जिन-जिन देशों में पहुंची, वहीं-वहीं पर लोकप्रिय बनतीं गईं।
अंग्रेजी के प्रख्यात आलोचक डॉ. सेमुअल जान्सन ने, नीति-कथा की परिभाषा इस प्रकार की है--'विशुद्ध नीतिकथा, एक ऐसा निवेदन है, जिसमें कुछ बुद्धिहीन प्राणी एवं कभी-कभी अचेतन पदार्थ, पात्रों के रूप में नीति-तत्त्व की
१. मूलाराधना आ० ६, गाथा १०६१ २. वही, गाथा ६१५ ३. वही, गाथा ७५६ ४. बृहद् कथाकोष प्रस्तावना सं० डॉ० ए० एन० उपाध्ये ।
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