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________________ प्रस्ताव ३ : दयाकुमारी ३६३ कुमार की संगति उसके पापी मित्र वैश्वानर से तो पहले से ही थी जिससे हम सब प्रगाढ उद्व ेग में पड़े थे और अब साक्षात चण्डिका जैसी इस हिंसादेवी को कुमार ने पत्नी बनाया । अब हम क्या करें ? इसी विचार में आज मेरा पूरा दिन बीत गया । कुमार श्राज आपके पास नहीं आये हैं इसका यही कारण है । महाराज पद्म विदुर का उत्तर सुनकर विचार में पड़ गये । वे बोले - विदुर ! यह शिकार का शौक तो महापाप का कारण है । हमारे वंश के किसी राजा ने आज तक यह शौक नहीं किया । इस शौक के काररण-स्वरूप उसकी स्त्री हिंसा को किसी भी प्रकार उससे अलग किया जा सके तो अच्छा हो । उत्तर में विदुर ने मेरे पिताजी से कहा - 'महाराज ! वैश्वानर की भांति यह हिंसादेवी भी अन्तरंग में रहने वाली है, अतः वह अपनी पहुँच के बाहर है । किन्तु देव ! आज मैंने सुना है कि जिनमतज्ञ नैमेत्तिक आज फिर यहाँ आया हुआ है । यदि प्रापकी इच्छा हो तो उसे बुलवाकर पूछा जाय कि इस विषय में हमें क्या करना चाहिये ?' राजा ने कहा - 'तब तो नैमेत्तिक को अवश्य बुलाओ ।' जिनमतज्ञ द्वारा दर्शित उपाय राजाज्ञा सुनकर विदुर जिनमतज्ञ नैमेत्तिक को बुलाने गया और थोड़ी ही देर में उसे साथ लेकर वापस आ गया । मेरे पिताजी ने नैमेत्तिक को प्रणाम कर उचित सन्मान दिया और उसे बुलाये जाने का कारण बताया । नैमेत्तिक ने बुद्धि नाड़ी के संचार को ध्यान में रखकर विचार पूर्वक पिताजी से कहा - महाराज ! इस विषय में एक मात्र बहुत ही अच्छा उपाय है । यदि वह उपाय सम्पन्न हो जाय तो कुमार को जिस स्त्री पर इतनी अधिक आसक्ति है, वह महा अनर्थकारिणी हिंसादेवी स्वयं ही भाग जाय । पद्म राजा - वह कौनसा उपाय है ? आर्य ! आप बताने की कृपा करें । नैमेत्तिक – मैंने आपको पहले ही बताया था कि समस्त उपद्रवरहित, सर्व गुणों का निवास स्थान, कल्याण- परम्परा का कारण, मन्दभाग्यों के लिये अति दुर्लभ चित्तसौन्दर्य नाम का एक नगर है । उस नगर में लोगों का हितकारी, दुष्टों का निग्रह करने में सतत प्रयत्नशील, शिष्ट मनुष्यों के परिपालन का विशेष ध्यान रखने वाला, कोष और दण्ड से समृद्ध शुभपरिणाम नाम के राजा हैं । इस राजा के यहाँ क्षान्ति नामक पुत्री को जन्म देने वाली निष्प्रकम्पता नामक देवी का वर्णन मैं पहले कर चुका हूँ | महाराजा के एक दूसरी चारुता नामक रानी भी है । यह लोक हितकारी, सकल शास्त्र और अर्थ की कसौटी, सद् मनुष्ठानों को प्रवर्तिका तथा पाप से दूर रहने वाली है । चारुता रानी जब तक प्राणी इस चारुता देवी की भली प्रकार भक्ति / उपासना नहीं करते * पृष्ठ २७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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