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________________ २४८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा पुरुष नहीं है। इसका अपने ऊपर अत्यधिक उपकार है जिससे हम अपना जीवन देकर भी उससे उऋरण नहीं हो सकते । मरिणमंजरी और कनकमंजरी मेरी दोनों पुत्रियाँ मुझे प्राणों से भी अधिक प्यारी हैं। मरिणमंजरी को तो हम नन्दिवर्धन के बड़े भाई शीलवर्धन को पहले ही दे चुके हैं, अब कनकमंजरी का विवाह नन्दिवर्धन से कर दें तो कैसा रहेगा ?' ॐ भाई कनकशेखर ने पिताजी के प्रशंसनीय विचार सुनकर कहा-'पिताजी ! आपके विचार बहुत ही सुन्दर हैं । आप अवसरोचित कहाँ क्या करना चाहिये यह भली प्रकार जानते हैं। मेरी प्यारी बहिन का विवाह नन्दिवर्धन के साथ करना बहुत ही उचित रहेगा। इस प्रकार बातचीत कर पिता-पुत्र ने बहिन कनकमंजरी का विवाह कुमार नन्दिवर्धन से करने का निश्चय किया है।' इस प्रकार पिताजी और भाई कनकशेखर के बीच वार्तालाप हो रहा था तभी मैं पिताजी की गोद में से उठकर यहाँ आ गई । आते-आते मैंने सोचा कि अहो ! में बहुत भाग्यशालिनी हूँ, मेरे भाग्य सर्व प्रकार से मेरे अनुकूल हो गये हैं। पिताजी के विचार और निर्णय को भी धन्य है ! भाई कनकशेखर के विनय को भी धन्य है !! अब तो मैं अपनी प्यारी बहिन कनकमंजरी के साथ जीवन भर रहूँगी, हम दोनों का कभी वियोग नहीं होगा और दोनों बहिने साथ-साथ अनेक प्रकार का प्रानन्द सुख प्राप्त करती रहेंगी। इन विचारों और मनोभावों के कारण मुझे इतना अधिक आनन्द प्राप्त हुआ कि मेरा हर्षातिरेक बाहर भी प्रकट हो गया । यही मेरे हर्ष विभोर होने का कारण है। मरिणमंजरी का उपरोक्त कथन सुनकर माता मलयमंजरी ने कहा-अरे कपिंजला! अभी हमने निमित्त रूप जो आवाज सुनी थी उसमें कार्य-सिद्धि की जो बात कही गई थी, देख ! वह अविलम्ब फलीभूत हो गई। कपिजला-इसमें क्या शक है। अकस्मात् सुनाई देने वाली और भविष्य सूचित करने वाली वाणी अवश्य देव वारणो ही होती है। प्रिय पुत्रो कनकमंजरी ! अब तू विषाद का त्याग कर और धैर्य धारण कर । समझले कि अब तेरी इच्छा पूर्ण हो चुकी है । तुझे जिस कारण से दाह-ज्वर हुआ था वह अब दूर हो गया है । पुत्रीवत्सल पिता ने तेरे हृदय को आनन्दित करने बाले कुमार नन्दिवर्धन से तेरा विवाह करने का निर्णय कर लिया है। कनकमंजरी का सन्देह हे तेतलि ! यह वृत्तान्त सुनकर कनकमंजरी को हृदय में कुछ विश्वास हुआ, फिर भी कामदेव के तौर-तरीके सर्वदा आड़े-टेढ़े होने से मेरे सामने देखकर भवें चढाकर मुझे डराकर वह कहने लगी-'ओह, हे माता ! ऐसे असत्य वचन बोलकर मुझे क्यों ठग रही हो? मेरा मस्तक फट रहा है, ऐसा बिना अते-पते का ढोंगभरा वचन बोलने से बाज आयो।' मलयमंजरी ने कहा- 'बेटी ऐसा मत बोल । यह बात * पृष्ठ २५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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