SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना ३१ और अंगपण्णत्ती में, इन दश साधकों के नामों में, और उनके क्रम-वर्णन में भी भिन्नता स्पष्ट देखी गई है। 'विपाक सूत्र' में शुभ-कर्मों का और अशुभ-कर्मों का परिणाम कैसा होता है ? यह बतलाने के लिये दश-दश व्यक्तियों के जीवन-चरित्रों को उद्धृत किया गया है । इसके प्रथम श्रुत-स्कन्ध में, दुष्कृत-परिणामों का दिग्दर्शन कराने के लिये, जिन दश कथानकों को चुना गया है, उनसे सम्बद्ध व्यक्तियों के नाम इस प्रकार हैं-मृगापुत्र, उज्झितक, अभग्नसेन, (अभग्गसेन), शकटकुमार, बृहस्पतिदत्त, नंदीवर्धन, उद्वरदत्त, शौर्यदत्त, देवादत्ता और अंजुश्री। स्थानांग में, इनसे भिन्न नाम मिलते हैं, जो कि इस प्रकार हैं--मृगापुत्र, गोत्रास, अंडशकट, माहन, नंदीषेण, शौरिक, उदुबर, सहसोद्वाह, आमटक और कुमारलिच्छवी । इन नामों का वर्तमान में उपलब्ध नामों के साथ सुन्दर समन्वय किया है--पं० बेचरदासजी दोशी ने, जो दृष्टव्य है। दूसरे श्रुतस्कन्ध में, सुकृत परिणामों का दिग्दर्शन कराने वाले, जिन दश जीवनवृत्तों को चुना गया है, उनके नाम हैं--सुबाहुकुमार, भद्रनन्दी, सुजातकुमार, सुवासवकुमार, जिनदासकुमार (वैश्रमणकुमार), धनपति, महाबलकुमार, भद्रनन्दी कुमार, और वरदत्तकुमार । इसी तरह के शिक्षाप्रद भावप्रधान आख्यान, उत्तराध्ययन सूत्र नियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति, अावश्यक नियुक्ति और नंदिसूत्र में भी हैं । ___ श्वेताम्बर परम्परा के प्रागमोत्तरवर्ती आख्यान साहित्य से जुड़े पउमचरिय (विमलसूरि), सुपार्श्वचरित (लक्ष्मणगणि), महावीर चरिय (गुणभद्र), तरंगवती, वसुदेव-हिण्डी, समराइच्चकहा (हरिभद्र), हरिवंश, प्रभावकचरित, परिशिष्टपर्व, प्रवन्ध चिन्तामरिण और तीर्थकल्प आदि अनेकों ऐसे ग्रन्थ हैं, जिनमें धर्म, शील, पुण्य, पाप और संयम एवं तप के सूक्ष्म-रहस्यों की विवेचना की गई है। जिनमें, मानवीय जीवन और प्राकृतिक विभूति के समग्र चित्र उज्ज्वलता और निपुणता के परिवेश में प्रस्तुत किये गये हैं। दिगम्बर परम्परा, श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध अङ्ग-साहित्य को स्वीकार नहीं करती । इसकी मान्यता है कि द्वादशाङ्ग साहित्य लुप्त हो चुका है। उसका जो कुछ भाग शेष बचा है, वह 'षट्खण्डागम', 'कषाय-पाहुड' और 'महाबन्ध' जैसे उपलब्ध ग्रन्थों में सुरक्षित है। फिर भी, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि ग्रंथों से यह ज्ञात होता है कि दिगम्बर परम्परा के अङ्ग-साहित्य में भी अनेक आख्यान पाये जाते थे। १ ""उजुदासो सालिभद्दक्खो । सुणक्खत्तो अभयो वि य धण्णो वरवारिसेण गंदगया। वंदो चिलायपुत्तो कत्तइयो जह तह अण्णे ॥ ---अंगपण्णत्ती-५५ २. ठाणांग-~१०/१११ । ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास-भाग १, पृष्ठ २६३, प्रकाठ पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy