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प्रस्ताव 3 : बाल, मध्यम, मनीषी, स्पर्शन
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हुआ और उसके प्रति प्रत्यधिक बहुमान उत्पन्न हुआ। पिताश्री को जब यह बात मालम हुई तब वे जोर से अट्टहास कर हँसे । मैंने जब उनसे हँसने का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि, वत्स ! जो प्राणी मेरे प्रतिकूल होते हैं उन्हें जैसी शिक्षा मिलनी चाहिये वैसा ही दण्ड बाल को मिला है, इसलिये यह सब सुनकर मुझे हर्ष होता है । माता सामान्यरूपा तो शोक में रोने लगी और पुत्र कहाँ गया होगा, इस विचार से बहुत उदास हुई । अपने पुत्र को ऐसा कोई कष्ट नहीं प्राया यह जानकर मेरी माता शुभसुन्दरी श्रानन्दित हुई । बाल को कोई उड़ाकर ले गया है, यह जानकर नगर के सब लोग तो प्रत्यन्त प्रसन्न हुए । तू बाल के पीछे गया. यह सुनकर नगर के लोगों को तुझ पर करुणा आई और मेरी स्वस्थ प्रवृत्ति (व्यवहार) को देखकर समस्त नगर निवासी मेरे प्रति आकर्षित हुए ।
मध्यम बुद्धि - यह सब बातें तुझे कैसे मालूम हुई ?
मनीषी - कुतूहल से मैं नगर में घूमने निकला था तभी लोगों को परस्पर बातें करते हुए मैने सुना था । वे कह रहे थे - अरे ! कुलकलंकी, अंतःकरण से महादुष्ट, मर्यादारहित, दुराचारी और सर्वदा विषय-वासना वश होकर निन्दनीय मार्ग पर चलने वाला लंपटी, संपूर्ण नगर को अनेक प्रकार से पीड़ित करने वाले बाल को कोई महात्मा उड़ाकर ले गया, यह बहुत अच्छा हुआ । यह सुनकर उनमें से एक बोल पड़ा - हाँ, यह तो बहुत अच्छा हुआ । पर, इस बाल को किसी ने छिन्न-भिन्न कर मार डाला, ऐसी बात यदि सुनने को मिले तो और भी अधिक अच्छा; क्योंकि इस पापी का तो किसी प्रकार नाश हो तभी नगर की स्त्रियों के शील की रक्षा हो सकती है । यह सुनकर उन लोगों में से तीसरे मनुष्य ने कहा- हाँ रे ! यह तो बहुत अच्छी बात हुई, पर इसके पीछे लगकर मध्यमबुद्धि दु:ख पाता है यह अच्छा नहीं । मुझे तो वह भला आदमी लगता है । तभी एक और व्यक्ति बोल पड़ा - अरे भाई ! जाने दे न ! पापी के मित्र कभी अच्छे होते होंगे ? जो सच्चा सोना होता है उनमें तो मेल होता ही नहीं । अच्छा आदमी यदि पापी का साथ करता है तो दुःखों की परम्परा और अपकीर्ति को प्राप्त करता ही है, इसमें श्राश्चर्य क्या है ? जो प्राणी प्रारम्भ से ही ऐसे पापकार्य में आसक्त अधम व्यक्ति के सम्बन्ध का त्याग करता है, उसे किसी प्रकार का दोष नहीं लगता । इस सम्बन्ध में मनीषी उदाहरण स्वरूप है । वह स्वयं महात्मा है, इसलिये पापप्रवरण बाल की संगति को छोड़कर कलंक रहित होकर पूर्णतया सुख में रहता है । भाई मध्यमबुद्धि ! लोग अन्दर ही अन्दर ग्रास में इस प्रकार की बातें करते थे जिसे सुनकर मैंने यह सब जाना है और इसीलिये तुझे बाल का साथ छोड़ने को कहा है ।
मध्यम बुद्धि को बोध और बाल की संगति का त्याग
मध्यम बुद्धि ने सोचा कि सचमुच दोषों में प्रासक्त व्यक्ति को इस भव में सुख की गंध भी नहीं मिलती, उसे एक के बाद दूसरा दुःख और दूसरे के बाद
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