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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जो इस लोक में कषायों के वशीभूत हो जाते हैं, उसका कारण महामोह का शासन ही है। ऐसा भव्य मनुष्य जन्म और जैन-शासन जैसे सुन्दर शासन को प्राप्त करके भी जो प्राणी अपने घर में आसक्त रह कर संसार में भटकते हैं, उसका कारण भी महामोह ही है। महामोह के परिणाम स्वरूप ही जब अपने पति को धोखा देकर, कुल की मर्यादा छोड़ कर स्त्री पर-पुरुष में आसक्त होती है, यह भी महामोह का ही परिणाम है । यह महामोह व्याकुलता-रहित होकर अपने वार्य से सब का त्याग कर यति-भाव में रहने वाले कई साधुओं को भी विडम्बित करता है । गंधहस्ती के समान यह महामोह स्वेच्छानुसार मनुष्यलाक, पाताल अोर स्वर्ग में स्वत्र आनंद से विलास करता है। प्रगाढ़ मित्रता से विश्वासपात्र बने हुए मित्रों को भी जो ठगते हैं, उसका कारण भी महामोह ही है। अपने उत्तम कुल को विशुद्ध मर्यादा का त्याग कर जो प्राणी परस्त्रागमन करते हैं, उसका कारण भी यह महामौह ही है। जा शिष्य गुरु के प्रताप से ही योग्य बने हैं, गुणवान बने हैं, वे भी उसी गुरु के प्रतिकूल हो जाते हैं, उसका कारण भी यह नराधम महामोह ही है। कुछ लोग चोरी, डाका, हत्या आदि घृणित कार्य करते हैं और उन कामों में प्रानन्द मानते हैं, उसका प्रवर्तक भी महामोह ही है। १-१७]
उपरोक्त प्रसिद्धि वाले महामोह राजा ने सम्पूर्ण विश्व का परिपालन करते हुए एक बार सोचा कि अब मैं वृद्ध हो गया हूँ अतः अपने राज्य का भार अब मुझे अपने पुत्र को सौंप देना चाहिये, क्योंकि मैं एक अोर रहकर भो अपने बल से राज्य संभालने में असमर्थ हूँ। ऐसा सोचकर विचक्षण महामोह राजा ने एक दिन अपना सम्पूर्ण राज्य अपने बड़े पुत्र को सौंप दिया और * अब वह निश्चिन्त होकर विश्राम कर रहा है तथा राज्य सम्बन्धी अधिक चिन्ता नहीं करता। फिर भी यह विश्व इस महाराजा के प्रभाव से ही चलता है। ऐसे बड़े जगत को चलाने और उसका परिपालन करने में इसके अतिरिक्त और कौन समर्थ हो सकता है ? महामोह राजा ऐसे आश्चर्योत्पादक और अद्भुत कार्य करने वाला है तथा त्रिलोक में भी भलीभांति विख्यात है। उनके सम्बन्ध में तुझे मुझ से पूछना पड़ा यह तो अद्भुत ही लगता है । [१८-२२]
____ मैंने कहा-भाई! आप मुझ पर ऋद्ध न हों । मैं तो यात्री हूँ। मैंने पहले सामान्य रूप से महामोह राजा का नाम तो सुना है, विशेष रूप से नहीं। किन्तु, वह रागकेसरी का पिता होता है यह मैं नहीं जानता था । तेरे स्पष्ट कथन से मेरा जो भ्रम था वह भी दूर हो गया । ऐसी बात है, तब तो आपने जो बात शुरु की थी, भद्र ! उसका शेष भाग भी कहिये जिससे मुझे सम्पूर्ण बात समझ में आ जाय। महामोह का वर्णन : युद्ध के लिये प्रस्थान
विपाक ने अपनी बात आगे चलाई। फिर रागकेसरी राजा अपने पिता महामोह महाराज के चरणों के निकट गया । महामोह को तमस नामक लम्बी-लम्बी
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