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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
बात आगे चलाई-उसके बाद से ही इस विस्तृत जगत में ये पाँचों पुरुष घूम रहे हैं और इन्होंने सम्पूर्ण जगत को अपने वश में कर लिया है। इन्होंने रागकेसरी राजा को भी अपने वश में कर लिया है । संसार के सब लोगों से ये इस प्रकार काम लेते हैं जैसे सब उनके सेवक हों ! परन्तु सुना है, धान्य समूह पर उपद्रव करने वाली ईतियों के समान उनके काम काज को ठप्प करने वाला उपद्रवकारी संतोष नामक एक चोर पुरुष उत्पन्न हुअा है। यह सन्तोष उनका सामना कर, उन्हें हराकर, कई लोगों को रागकेसरी राजा की सीमा से बाहर निकालकर निर्वृत्ति नगर में ले गया है।
विपाक की बात सुनकर मैंने सोचा कि हमारे सम्मुख बाल और मनीषी को स्पर्शन ने जो बात कही थी, उसमें तो भवजन्तु को सागम द्वारा मोक्ष में ले जाने की बात थी और यह विपाक कहता है कि सन्तोष नामक प्राणी ने स्पर्शनादि से अभिभूत पुरुषों को भगाकर निर्वृत्ति नगर में ले जाकर स्थापित किये हैं, अतः मोक्ष दिलाने वाला सदागम है या सन्तोष ? इस प्रकार इन दोनों की बातों में विरोधाभास-सा लगता है, पर अभी इस व्यर्थ के विचार की क्या आवश्यकता है ? अभी तो विपाक जो कहता है उसे ध्यान से सुनू, फिर अवकाश के समय इस पर विचार करूंगा। रागकेसरी को क्षोभ और सान्त्वना
तत्पश्चात् विपाक ने अपनी बात पुनः आगे चलाई. --* सन्तोष नामक प्राणी स्पर्शन आदि पुरुषों को बहुत पीडा पहुँचा रहा है, पराजित कर रहा है, यह बात उनके मुख्य पुरुषों ने आज रागकेसरी को बताई। अपने सेवकों का पराभव राजा ने पहले कभी नहीं सुना था, अतः यह दुस्सह बात वह सहन नहीं कर सका और बात सुनते ही राजा की आँखें क्रोध से लाल हो गईं, होठ फड़कने लगे, भौंहें भयंकर रूप से चढ गईं और कपाल पर रेखायें पड़ गयीं। उसका पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया, जमीन पर जोर-जोर से हाथ-पैर पटकने लगा और प्रलय काल की महा भयंकर अग्नि जैसा रूप धारण कर, अत्यन्त क्रोधित होते हुए अपशब्द बोलने लगा तथा अपने सेवकों को आज्ञा देने लगा- 'अरे ! दौड़ो, शीघ्र ही प्रयाण का डंका बजायो, चतुरंग सेना तैयार करो।' राजाज्ञा को सेवकों ने शिरोधार्य किया ।
अपने राजा को इतना अधिक चिन्तित देखकर विषयाभिलाष मंत्री ने कहा- देव ! इतने प्रावेश में आने की क्या अावश्यकता है ? यह संतोष बेचारा किस खेत की मुली है ? इसको किसी प्रकार का बढावा देने की आवश्यकता नहीं है। जो केसरी सिंह कपाल में से मद झरते हाथियों के झुण्ड को लीला मात्र मे चूर्ण कर सकता है वह क्या हरिण सदमारने के लिये चिन्ता करेगा? आपके साक्ष उस बेचारे का क्या अस्तित्व ? उसकी क्या शक्ति ? महाराज ! इसके बारे में आपको इतनी चिन्ता क्यों ? * पृष्ठ १६०
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