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प्रस्ताव ३ : क्षान्ति कुमारी
कुमार की समस्त जन्मों में स्त्रीरूप में साथ रहने वाली भवितव्यता का वह अनुगमन करता है, पर कभी-कभी अपनी प्रवृत्ति के सम्बन्ध में वह नंदिवर्धन कुमार की शक्ति से थोड़ा सा डरता भी है । इस प्रकार यह कर्मपरिणाम महाराज इन अंतरंग लोगों को पूछ कर अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं । स्वेच्छानुसार कार्य करते समय बहिरंग तन्त्र के लोग कितना भी निवेदन करें, रुदन करें, तब भी उस पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है। अधिक क्या ? उसके मन में जो आता है वह वही करता है । अत: उसकी प्रार्थना करना या उससे कुछ मांगना व्यर्थ है । जब उसको रुचि - कर लगेगा तब वह स्वयं शुभपरिणाम राजा को कहकर उनकी पुत्री क्षान्ति को आपके कुमार को दिलवा देगा ।
पद्म राजा - प्रार्थ ! यदि ऐसा ही है तब तो हमारा बहुत दुर्भाग्य है । कर्मपरिणाम राजा के मन में यह काम करने की कब इच्छा होगी यह तो हम नहीं जानते और कुमार को उसके पापी - मित्र से जब तक दूर नहीं किया जायेगा तब तक उसके सभी गुण निष्फल रहेंगे । अतः इसके निराकरण की वर्तमान में तो कोई सम्भावना नहीं लगती । यह तो ऐसी बात हो गई कि हम इस समय जीवित होते हुए भी मृतक के समान हैं ।
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जिनमतज्ञ -- महाराज ! इस विषय में शोक करना व्यर्थ है । जहाँ परिस्थिति ऐसी है कि अपना कुछ वश नहीं, वहाँ हम लोग क्या कर सकते हैं ? जो कार्य होने योग्य हो उसमें यदि मनुष्य प्रालस्य करे तो वह धिक्कार योग्य है, पर जहाँ कार्य किसी भी प्रकार होने योग्य न हो उस विषय में वह अपराधी नहीं गिना जा सकता । [ १ ]
नीति - शास्त्र में भी कहा है
कि :
जो व्यक्ति अपनी और विपक्ष की शक्ति तथा कमजोरी का विचार किए बिना अपने से न हो सकने वाले कार्य करने का प्रयास करते हैं वे विद्वानों के सम्मुख हँसी के पात्र बनते हैं । [२]
इस स्थिति को ध्यान में रखकर जैसा होना होगा वही होगा, ऐसा सोचकर इस समय चिन्ता का त्याग कर समय की प्रतीक्षा करना ही उचित है । [३] * तुम्हारे मन को शान्ति मिले ऐसा दूसरा भी उपाय बताता हूँ । निरालम्बता धाररण करिये, आप जैसे लोगों को दीनता दिखाना शोभा नहीं देता । [४]
पद्म राजा - आर्य ! आपने बहुत ठीक कहा । श्रापने जो अन्तिम बात कही है उससे मेरे मन को थोड़ी शान्ति प्राप्त हुई है । हमारे मन की शान्ति का अन्य क्या उपाय है ? वह कहिये ।
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