SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताव ३ : क्षान्ति कुमारी २०३ चित्त केवल निष्प्रकम्पता महादेवी की तरफ ही आकर्षित होगा, अतएव अद्वितीय शारीरिक सौन्दर्य की धारिका होने से महादेवी को विजय-ध्वज धारण करने वाली कहा गया है। [१-३] तीनों लोकों में रुद्र, इन्द्र, उपेन्द्र, चन्द्र आदि प्रसिद्ध कलाकार हैं और इनके अतिरिक्त अन्य जो भी लोक-विख्यात कलाकार हैं वे सब लोभ, काम, क्रोध आदि भाव शत्रुओं से पराजित हैं, अतएव परमार्थतः कलाओं में निपुण कलाकार नहीं माने जा सकते । परन्तु इस महादेवी में तो ऐसा अपूर्व कला-कौशल है कि खेल-खेल में ही इसने सब शत्रुओं को जीत कर त्रिभूवन को अभिभूत कर दिया है। इसीलिये महारानी को कला-कौशल से त्रिभुवन में विजय प्राप्त करने वाली कहा गया है। [४-५] कामदेव की स्त्री रति के विलास तो मात्र कामदेव को संतुष्ट करने वाले होते हैं, मुनि तो इन विलासों की बात भी नहीं जानते, किन्तु इस महादेवी के व्रतनिर्वाहादि विलास तो मुनिवरों के चित्त को भी आकर्षित करने वाले हैं। इसीलिये इस महादेवी को स्वकीय विलासों से रति को भी तिरस्कृत करने वाली कहा गया है। [७-८] महादेवी की पतिभक्ति के सम्बन्ध में तो इतना ही कहने का है कि अपने पति शुभपरिणाम महाराजा पर जब किसी प्रकार की भी आपत्ति आ पड़ती है तब यह महादेवी अपने प्राण देकर भी अपनी अचिन्त्य शक्ति से पति को आपत्ति से उबार लेती है। इसीलिये उसे पति-भक्ति में अरुन्धती से अतिशय माहात्म्य वाली कहा गया है, क्योंकि महासती अरुन्धती अपने पति का संरक्षण करने में सक्षम नहीं हुई थी। [६-११] इस महारानी का अधिक क्या वर्णन करें ! संक्षेप में कहें तो राजा के सभी कार्य सम्पन्न कराने वाली यह निष्प्रकम्पता महादेवी है। यही कारण है कि राजा के विशाल राज्य में वह एक अति प्रमुख स्त्री मानी जाती है । [१२] क्षान्ति कुमारी शुभपरिणाम राजा और निष्प्रकम्पता महारानी के एक क्षान्ति नामक पुत्री है, वह सुन्दरतम युवतियों से भी सुन्दर, अनेक आश्चर्यों का जन्म स्थान, गुणरत्नों की मंजूषा और शरीर की विलक्षणता से महामुनियों के मन को भी आकर्षित करने वाली है। जो प्राणी क्षान्ति की सेवा करते हैं उनके लिए वह प्रानन्ददायिनी है। वह इतनी भली है कि उसका स्मरण करने मात्र से वह समस्त दोषों का हरण (नाश) करवा देती है। विकसित नेत्रों वाली क्षान्ति जिस मनुष्य की तरफ * पृष्ठ १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy