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________________ प्रस्ताव : १ पीठबन्ध सर्वज्ञ मन्दिर में निवास करने वाले विनीत, महद्धिक और महाकौटुम्बिक के समान हैं, ऐसा समझे। अशुभ दृष्टि वाले अन्य जीवों का तो सर्वज्ञ मन्दिर में निवास ही कैसे हो सकता है ? राजमन्दिर में रमणियाँ । पूर्व में कहा गया है :-"विलास करती अनेक सुन्दर स्त्रियों से वह राजमन्दिर देवलोक को भी अपने वैभव से पराजित कर रहा था।" मौनीन्द्र-शासन में इसकी संघटना इस प्रकार है :-सम्यक् दर्शन धारण कर, अणुव्रतों का आचरण और जिनेश्वर देव एवं साधुगणों की भक्ति करने में परायण श्राविकावन्द को विलास करने वाली रमणियाँ समझे। ये श्रमरणोपासिकायें भी श्रमरणोपासक के समान सर्वज्ञ रूपी महाराजा की अन्तःकरण पूर्वक आराधना करने में प्रवृत्त होती हैं एवं उनकी आज्ञा का पालन करने में प्रयत्नशील रहती हैं। वे विशुद्ध श्रद्धा (दर्शन) से अपनी आत्मा को दृढ़तर बनाती हैं, अणुव्रतों को धारण करती हैं, गुणव्रतों को ग्रहण करती हैं, शिक्षाव्रतों का अभ्यास करती हैं, विभिन्न प्रकार के तप करती हैं, स्वाध्याय में तल्लीन रहती हैं, साधुवर्ग को उनके लिए उपयोगी और दाता के लिए शोभाजनक दान देती हैं, सद्गुरुओं के चरणों का वन्दन कर हर्षित होती हैं, सुसाधुओं को नमन कर सन्तुष्ट होती हैं, प्रशस्य धर्मकथाएँ सुनकर प्रमुदित होती हैं, स्वजन-सम्बन्धियों से भी अधिक स्वधर्मीजनों को समझती हैं, स्वधर्मीबन्धुओं से रहित प्रदेश में रहने पर उद्वेग को प्राप्त करती हैं, साधुजनों को दान दिये बिना भोजन करना उन्हें अप्रीतिकर लगता है और भगवद् धर्म की आसेवना से स्वयं ने इस संसार समुद्र को प्रायशः पार कर लिया ऐसा स्वीकार करती हैं। इस प्रकार की ये श्रमरणोपासिकाएँ सर्वज्ञ शासन मन्दिर के मध्य भाग में पूजा के उपकरणों का आकार धारण कर, श्रमरणोपासकों (अपने पतियों के साथ) के साथ बन्धी हुई अथवा एकाकी (विधवा या कुमारी) रूप में निवास करती हैं । उक्त गुणों से रहित स्त्रियाँ भी यदि राजमन्दिर में निवास करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं तो वे बाह्य दृष्टि से ही हैं। वस्तुतः गुणहीन नारियाँ तो सर्वज्ञ मन्दिर के बाहिर ही हैं, ऐसा समझे। यह भगवन्तों का शासन मन्दिर विशुद्ध भाव से ही ग्रहण करने का है। अतएव बाहिर की छायामात्र से उसमें प्रविष्ट प्राणियों को परमार्थतः शासन मन्दिर से बहिर्भूत ही समझे। [ १० ] राजमन्दिर के विषय पाँचों इन्द्रियों के शब्दादि अनुपम विषय की उपभोग्य सामग्रियों से परिपूर्ण वह राजमन्दिर अत्यन्त सुन्दर लगता था । ऐसा पूर्व में कह चके हैं। इसकी संगति इस प्रकार है :-समस्त इन्द्र जिनेश्वर-शासन मन्दिर के मध्यभाग में निवास करते हैं । अन्य महद्धिक देवता भी प्रायः कर इसी शासन मन्दिर में निवास करते हैं । जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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