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________________ प्रस्ताव १ : पीठबन्ध वह दरिद्री भीख माँगते हुये उस नगर के छोटे-बड़े घरों में, भिन्न-भिन्न मुहल्लों और गलियों में बिना थके भटकता रहता । दुःखग्रस्त महादुर्भागी को यों भटकते हुये उसे कितना समय बीत गया, इसका भी उसे ध्यान नहीं रहा। [१३०-१३७] सुस्थित महाराजा : कविवर द्वारपाल ७. इस नगर में सुस्थित नामक एक प्रख्यात महाराजा राज्य करता था जो स्वभाव से ही सब प्राणियों पर अत्यधिक प्रेम रखने वाला था। एक बार घूमते हुये वह निष्पुण्यक दरिद्री राजा के भवन (महल) के पास पहुँच गया। उस भवन के द्वार पर स्वकर्मविवर नामक द्वारपाल नियुक्त था। उस अत्यन्त करुणाजनक भिखारी को देखकर द्वारपाल ने कृपा कर उसे अपूर्व राजमन्दिर (महल) में प्रवेश करने दिया। [१३८-१४०] राजमन्दिर का वैभव ८. अनेक रत्नों के प्रकाश से देदीप्यमान राज मन्दिर (महल) में अन्धेरे का तो कहीं नाम भी नहीं था। कटिमेखला और झांझर (कंदोरा और पायल) के घुघरुनों से उत्पन्न स्वरों से उस राजमन्दिर (महल) में स्वयं ही अनेक राग उत्पन्न हो रहे थे। झूलती हुई मोतियों की लड़ियों से सुशोभित दिव्य वस्त्रों के सुन्दर पर्दे भवनों में चारों ओर लटक रहे थे। पान चबाने से प्रारक्त सुन्दर मुख वाले भवननिवासियों से वह राजमन्दिर शोभायमान था। भ्रमरों द्वारा गुजरित और परिवेष्टित स्वर्ण जैसे सुन्दर रंग की विविध प्रकार से गूथी हुई अनेक पुष्पमालाओं से उस भवन का आँगन सुगन्धित और सुवासित हो रहा था। शरीर पर लेप करने योग्य कअनेक सुवासित और सुगन्धित वस्तुएँ जमीन पर इतनी मात्रा में बिखरी पड़ी थीं कि उनसे वातावरण ही सुगन्धमय बन गया था। राजमन्दिर में रहने वाले सभी प्राणी हर्ष से विभोर होकर आनन्द से विभिन्न वाद्य यन्त्रों से मनोरंजन कर रहे थे। जिनके आन्तरिक तेज से सभी शत्रु पलायन कर गये थे और जो वाह्य व्यापारों से भी निश्चिन्त हो गए थे ऐसे अनेक राजपुरुष उस राजमन्दिर में निवास करते थे। सम्पूर्ण जगत् की चेष्टानों को जानने वाले, स्वबुद्धि से अपने शत्रुओं को भली प्रकार पहचानने वाले और सम्पूर्ण नीतिशास्त्रों में पारंगत अनेक मंत्री भी वहाँ निवास करते थे। युद्ध के मैदान में अपने समक्ष आये हुए साक्षात् यमराज को देखकर भी जो विचलित नहीं होते थे, ऐसे असंख्य योद्धा वहाँ सेवारत थे। [१४१-१४७] है. इस विशाल राजमन्दिर में अनेक व्यक्ति नियुक्तक (कामदार) थे जो सर्वदा करोड़ों नगरों, असंख्य ग्रामों और अनेक परिवारों का परिपालन करते थे तथा शासन-प्रबन्ध संचालित करते थे। स्वामी पर अत्यन्त प्रीति और श्रद्धा रखने वाले विशिष्ट बलवान और वास्तविक सूझ-बूझ वाले अनेक तलवगिक (कोटवाल) कार्यकर्ता वहाँ रहते थे। अनेक वृद्ध स्त्रियाँ भी रहती थीं; जिन्होंने विषयों का सर्वदा * पृष्ठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.Gre
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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