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________________ ३७८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा छोटी-मोटी दुकानें हैं। इन्हीं के मध्य में अनेक छोटे-बड़े सुन्दर नगर हैं ।* इस बाजार के मध्य भाग में क्षेमपुरी स्थित है । इस स्थान को सुकच्छविजय कहा जाता है । आप हम सभी अभी इसी क्षेत्र में बैठे हैं और यह मनोरम क्षेमपुरी भी इसी विजय में स्थित है। [४६७-५००] ___इस क्षेमपुरी में शत्रु रूपी अन्धकार का नाश करने वाला, सूर्य के समान तेजस्वी युगन्धर राजा राज्य करता था। वह महाप्रतापी, दिव्यकांति युक्त और कीर्तिवान था । इसके एक अत्यन्त प्रिय नलिनी नामक प्रसिद्ध पटरानी थी । राजा के दर्शन मात्र से उसका मुखकमल विकसित हो जाता था । वह बहुत भली, शांत, सुशील और नम्र थी। सूर्य के दर्शन से जैसे कमलिनी प्रफुल्लित हो जाती है, वैसे ही वह राजा को देखकर विकसित हो जाती थी। हे अगृहीतसंकेता ! मेरी पत्नी भवितव्यता ने मुझे पुण्योदय के साथ इसी की कुक्षि में प्रवेश करवाया। [५०१-५०३] जिस रात मैंने रानी की कख में प्रवेश किया उसी रात उस कमलनेत्री ने सुख-शय्या में सोते-सोते चौदह महा स्वप्न देखे । स्वप्न देखकर रानी जागृत हुई और उसने प्रहृष्ट होकर अपने पति को वे गज आदि के स्वप्न सुनाये । राजा ने शांत चित्त से ध्यानपूर्वक स्वप्न सुने । फिर बोला, देवि ! तुम्हें सर्वोत्तम स्वप्न आये हैं । इनके फलस्वरूप कुलदीपक पुत्र होगा जो देव-दानव का पूजनीय महान चकवर्ती बनेगा । पति के इस प्रकार मनोरम वाक्य सुनकर रानी अति हर्षित हुई। उसके नेत्र विकसित हो गये और उसने स्वामी के फलार्थ को स्वीकार किया । पश्चात् वह प्रेमपूर्वक गर्भ का पोषण करने लगी। समय पूर्ण होने पर माता ने मुझे जन्म दिया, अन्तरंग मित्र पुण्योदय भी गुप्त रूप से मेरे साथ ही था। मेरी अत्यन्त सुन्दर प्राकृति को देखकर रानी मन में अति प्रसन्न हुई। [५०४-५०८] प्रियंकरी दासी तुरन्त मेरे पिताजी के पास गई । अत्यन्त हर्षावेश में गद्गद कंठ और हर्षोल्लसित नेत्रों से उसने पिताजी को मेरे जन्म की बधाई सुनाई । पुत्रजन्म की बधाई सुन कर पिताजी हर्षित हुए, उनका पूरा शरीर रोमांचित हो गया और बधाई लाने वाली दासी को इच्छानुकूल पारितोषिक दिया। फिर पिताजी ने मेरा जन्म महोत्सव मनाने की प्राज्ञा दी। पिताजी के आदेश से उस समय चारों तरफ लोग जन्मोत्सव मनाने लगे। सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर लोग अपने सौन्दर्य का प्रदर्शन करने लगे, रसपूर्वक नाचने-गाने लगे, बाजे बजाने लगे, मस्ती में आकर हंसी-ठिठोली करने लगे, समूह बनाकर उद्यानों में जाने लगे, भोजन और मुखवास साथ में लेकर वन-विहार को निकल पड़े, स्वयं के सन्मान में वृद्धि हुई हो ऐसे हर्षोद्गार निकालने लगे, दान देने लगे और कामदेव का सन्मान करने लगे। सम्पूर्ण नगर और राज्य आनन्दोत्सव में निमग्न हो गया। छः दिन तक महान उत्सव मनाया गया, लोगों ने अनेक प्रकार की उद्दाम/उत्कृष्ट लीला की और आनन्द किया। [५०६-५१३] * पृष्ठ ७३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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