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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
"जब तक कार्य का अन्त दिखाई न दे तब तक भले ही डर लगता रहे, किन्तु प्रयोजन के प्राप्त होने पर तो निर्भय होकर प्रहार करना चाहिये।" [३६४]
__ महामोहराज ने मन्त्री के कथन का अनुमोदन किया, सभी योद्धाओं ने उसका समर्थन किया, युद्ध की सामग्री तैयार की गई और सेना को तैयार रहने की आज्ञा दी गई। थोड़े ही समय में सारा सैन्य सन्नद्ध होकर आ पहुँचा । सेना में युद्धोत्साह था, किन्तु सब के मन में यह भय अवश्य था कि 'महाराजा कर्मपरिणाम अभी उनके विरुद्ध हैं' अत: वे सब व्याकुल भी हो रहे थे। भवितव्यता से परामर्श
अन्त में विचार कर वे देवी भवितव्यता के पास आये और उससे सविनय पूछा
हे भगवति ! इस परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिये ?
भवितव्यता ने कहा--भद्रो ! अभी युद्ध का समय नहीं है। अभी मेरा आर्यपुत्र (पति) सुधर गया है, आदरणीय बन गया है। कर्मपरिणाम महाराज के अभी उसके प्रति उच्च विचार हैं। फिर शुभपरिणाम आदि बड़े-बड़े राजा भी उसके पक्ष में हैं । दोहरी मदद और सहयोग से मेरे आर्यपुत्र संसारी जीव को अपने सैन्यबल के निरीक्षण की उत्सुकता जाग्रत हुई है । ऐसे संयोगों में महाराजा उसे उसका सैन्यबल अवश्य दिखायेंगे और वे आर्यपुत्र उसका पोषण भी अवश्य करेंगे। अत: यदि तुम अभी * युद्ध करोगे तो तुम सब का प्रलय एवं नाश हो जायेगा । अतः अभी तुम सब चुपचाप छिपकर योग्य अवसर की प्रतीक्षा करो। जब अवसर आयेगा तब मैं स्वयं तुम्हें सूचित कर दूंगी। तुम तो जानते ही हो कि मैं सदाकाल तुम सब के कार्यों का विशेष ध्यान रखती हूँ। फिर तुम्हें इस विषय में चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है ?
भवितव्यता के परामर्श से उन्होंने प्रकट-युद्ध का विचार छोड़ दिया, किन्तु अपनी-अपनी योगशक्ति से मेरी चितवृत्ति में छिप कर बैठ गये। मोह-कल्लोल और सद्बोध
उनके प्रभाव से मेरे मन के घोड़े दौड़ने लगे । प्राचार्यश्री ने कहा था कि "इन कन्याओं से विवाह के पश्चात् ही वे तुझे दीक्षा देंगे" पर, यह दीक्षा तो बाहों से स्वयंम्भूरमण समुद्र को तैरने जैसी दुष्कर है। मरण पर्यन्त साधुनों की अति कठिन नैष्ठिक क्रियाओं का पालन करना होगा। शरीर में रोगादि अातंकों की भी सम्भावना है । फिर सुख से पाले पोषे गये मेरे इस शरीर से यह सब कैसे होगा? दीर्घकाल तक में रूखा-सूखा भोजन कैसे करूंगा ? कातरहृदया बेचारी मदनमंजरी अभी जवान है, उसे जीवन-पर्यन्त मेरा वियोग सहना अत्यधिक कष्टदायक होगा। यह सब सोचते हुए मेरा चित्त थोड़ा विचलित हुआ।
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