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________________ भूमिका 'ध्यानस्तव' भास्करनन्दिका एक सौ पदोंका काव्य है, जिसे उन्होंने अपने चित्तकी एकाग्रताके लिए ही रचा है। अपनी विधामें यह जिनदेवके प्रति की गयी प्रार्थना है । 'झाणज्झयण' प्राकृतमें, 'ध्यानशतक' ( जिनभद्र विरचित ? ) की भांति इसमें १०० श्लोक हैं, जो दक्षिणमें काफी प्रसिद्ध है ( 'धवला' में उद्धृत होनेके कारण ), और 'ध्यानस्तव' जिसका ऋणी है। यह उनके दूसरे ग्रन्थ 'तत्त्वार्थवृत्ति' पर आधारित है, जो उमास्वामीकी 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' की टीका है, और 'जिनरत्नकोश' के अनुसार जिसकी करीब चालीस टीकाएं हैं। इस भूमिकामें मैं सबसे पहले इस काव्यकी एक छोटी रूपरेखा देना चाहूँगी, और तब 'तत्त्वार्थवृत्ति' और 'ध्यानस्तव' के सम्बन्धकी चर्चा करते हुए, मैं अपने 'इतने कम परिचित' ग्रन्थकारके प्रश्नको उठाना चाहूँगी, सम्भवतः जिनका काल बारहवीं शताब्दीका आरम्भ है। 'ध्यानस्तव' का यह पाठ ( अनुवादके साथ ) मूडबिद्री में ताड़पत्र पाण्डुलिपि सं. ७५५ पर आधारित है। कन्नड लिपिसे देवनागरीमें इसकी प्रतिलिपि श्री बी. देवकुमार जैनने तैयार की, और डॉ. आ. ने. उपाध्येने उसकी मेरे लिए व्यवस्था की। डॉ. उपाध्येके बिना, अनुवादका यह संक्षिप्त अंश, जिसे उनके ही निर्देश में प्रस्तुत किया गया है, सम्भव नहीं हो सकता था। उनके प्रति मैं अपना विनम्र आभार प्रकट करती हूँ। मैंने ग्रन्थकारके कालका सही निरूपण करने तक अपनेको सीमित कर लिया है। इस विषयके अध्ययनमें अपनी अल्पज्ञताके कारण मैंने अनेक भूलें की होंगी, आशा करती हूँ, सम्बद्ध विद्वज्जन उनमें कृपापूर्वक सुधार कर देगें । अपना मूलपाठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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