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काम अमेरिकामें ही पूरा कर लिया था। उनकी बड़ी सहृदयता है कि उन्होंने अपनी पुस्तक माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला प्रकाशनको दी, और इस ग्रन्थमालाको संमृद्ध बनाया । हम उनके अत्यन्त आभारी हैं।
हम श्रीमान शान्तिप्रसादजी जैन और उनकी विदुषी पत्नी श्रीमती रमाजीके भी अत्यन्त आभारी हैं कि उन्होंने इस ग्रन्थमालाको इतनी उदारतापूर्वक अपना संरक्षण दिया । जैन साहित्यके क्षेत्रमें गम्भीरतापूर्वक काम करने वाले सभी लोगोंके लिए यह एक सुअवसर भी है और चनौती भी। जैन भण्डारोंमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंशकी अनेक छोटी-बड़ी कृतियाँ अब भी उपेक्षित पड़ी हैं, हम अपने विद्वानोंसे उन्हें सम्पादित करने और उन्हें एक साफ़-सुथरे कलेवरमें प्रस्तुत करनेका हार्दिक आग्रह करते हैं : यह एक कर्तव्य है, जिसके लिए हम अपने आचार्योंके ऋणी हैं, जिन्होंने हमारे साहित्यमें हमारे लिए एक महान् परम्परा छोड़ी है। ..
बालघाट
हीरालाल जैन आ. ने. उपाध्ये
मैसूर
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