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आचारदिनकर (खण्ड-३) 28 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
इस प्रकार उपर्युक्त मंत्रपूर्वक अग्नि आदि दसों दिक्पालों का आह्वान करें। तत्पश्चात् निम्न छंदपूर्वक बिम्ब पर पुष्पांजलि चढ़ाएं।
“सर्वस्थिताय विबुधासुरपूजिताय सर्वात्मकाय विदुदीरितविष्टपाय स्थाप्याय लोकनयनप्रमदप्रदाय पुष्पांजलिः भवतु सर्वसमृद्धि हेतुः ।।"
फिर दसवां अभिषेक हरिद्रा आदि सर्व औषधियों से वासित जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - “सकलौषधिसंयुक्तया सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः ।
स्नपयामि जैनबिम्बं मंत्रिततन्नीरनिवहेन ।। उसके बाद ग्यारहवाँ अभिषेक सहदेवी आदि सर्व औषधियों से युक्त जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - “सर्वामयदोषहरं सर्वप्रियकारकं च सर्वविदः।
पूजाभिषेककाले निपततु सर्वोषधीवृन्दम् ।।" बारहवाँ अभिषेक विष्णुक्रान्ता आदि शतमूलों से युक्त जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - “अंनतसुख संघातकन्दकादम्बिनीसमम् ।
शतमूलमिदं बिम्बस्नात्रे यच्छतु वांच्छितम् ।।" तेरहवाँ अभिषेक शतावरी आदि सहनमूलों से युक्त जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - “सहस्रमूलसर्वर्द्धिसिद्धिमूलमिहार्हतः ।
स्नात्रे करोतु सर्वाणि वांछितानि महात्मनाम् ।।" फिर गुरु दृष्टिदोष के निवारणार्थ दाएँ हाथ से जिन-प्रतिमा का स्पर्श करके बिम्ब में निम्न सिद्धिजिनमंत्र का न्यास करें -
"इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भव्यानां स्वाहा अथवा हुँ हुँ ह्रीं क्ष्वी ऊँ भः स्वाहा।"
तत्पश्चात् आचार्य द्वारा अभिमंत्रित लाल कपड़े में बंधी हुई सरसों की पोट्टलिका को स्नात्रकारक (स्नात्र कराने वाले) बिम्ब के दाएँ हाथ में बांधे। रक्षापोट्टलिका अभिमंत्रित करने का मंत्र निम्नांकित है -
"ऊँ क्षाँ क्षी क्ष्वी स्वीं स्वाहा।' बिम्ब को चंदन-तिलक करें। फिर गुरु परमात्मा के आगे अंजली करके इस प्रकार विज्ञप्ति करते हैं -
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