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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 26 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक पौष्टिककर्म विधान तत्पश्चात् पूर्व में बताए गए गुणों से युक्त स्नात्र कराने वाले चार पुरुष. चार-चार कलशों से गीत आदि मधुर ध्वनियों के मध्य स्नात्र करते हैं। चारों ही पुरुष उन चार-चार कलशों का जल जिनबिम्ब के ऊपर प्रक्षिप्त करते हैं। कलशजल प्रक्षिप्त करने के बाद बिम्ब को चंदन का तिलक लगाते हैं, पुष्प चढ़ाते हैं और धूप उत्क्षेपण करते हैं। बिम्ब पर कलशजल प्रक्षिप्त करते समय नमस्कार-मंत्र का पाठ करें। फिर सर्वप्रथम हिरण्योदक से निम्न छंद बोलकर स्नान कराएं - “सुपवित्रतीर्थनीरेण संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् । __पततु जले बिम्बोपरि सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ।।" दूसरी बार पंचरत्नों के जल से स्नात्र कराएं। ये पंचरत्न प्रवाल, मोती, स्वर्ण, चाँदी एवं तांबा रूप हैं। पंचरत्न-स्नात्र का छन्द निम्नांकित है - "नानारत्नौघयुतं सुगंधि पुष्पाधिवासितं नीरम्। पतताद्विचित्र वर्ण मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे।।' - तीसरा अभिषेक वटवृक्ष, पीपल, सिरस, गूलर आदि उदुम्बरवर्ग के वृक्ष की छाल से वासित जल से कराएं। इसका छन्द निम्न है - "प्लक्षाश्वत्थोदुम्बरशिरीषवल्कादिकल्कसंसृष्टम्। बिम्बे कषायनीरं पततादधिवासितं जैने।।" - चौथा अभिषेक पर्वत, पद्मसरोवर, नदियों के संगम-स्थल और नदी के दोनों तटों की मिट्टी, गाय के सींग से खोदी गई मिट्टी एवं वल्मीक आदि की मिट्टी से वासित जल से कराएं। इसका छंद निम्न “पर्वत सरोनदी संगमादिमृद्भिश्च मंत्र पूतानि। ___ उद्वर्त्य जैन बिम्बं स्नपयाम्यधिवासना समये ।।" पाँचवां अभिषेक पंचगव्य एवं दर्भ से युक्त जल से निम्न छंद बोलकर कराएं - "दधिदुग्धघृतछगणप्रसवणैः पंचभिर्गवांगभवैः। दर्भोदकसंमित्रैः स्नपयामि जिनेश्वरप्रतिमाम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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