SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 24 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान __“ऊँ नमो अरिहंताणं हृदयं रक्ष-रक्ष, ऊँ नमो सिद्धाणं ललाटं रक्ष-रक्ष, ऊँ नमो आयरियाणं शिखां रक्ष-रक्ष, ऊँ नमो उवज्झायाणं कवचं सर्वशरीरं रक्ष-रक्ष, ऊँ नमो सव्वसाहूणं अस्त्रम् ।" इस प्रकार सब जगह तीन-तीन बार इस मंत्र का न्यास करते हैं। तत्पश्चात् सात बार शुचिविद्या का आरोपण करते हैं। शुचिविद्या का मंत्र इस प्रकार है - “ॐ नमो अरिहंताणं, ऊँ नमो सिद्धाणं, ऊँ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ऊँ नमो लोए सव्वसाहूणं, ऊँ नमो आगासगामीणं, ऊँ नमो चारणलद्धीणं, ऊँ हः क्षः नमः ऊँ अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा। इस मंत्र से सर्वांग की शुद्धि करते हैं। कुछ आचार्य स्नात्रकारों के अंगों की रक्षा भी इसी मंत्र से करने के लिए कहते हैं। इसके बाद संक्षिप्त रूप से दिक्पाल की पूजा करें। गुरु बलिमंत्र से बलि को अभिमंत्रित करते हैं। बलि का मंत्र इस प्रकार है - “ॐ ह्रीं क्ष्वी सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष-रक्ष स्वाहा। __इस मंत्र से बलि को इक्कीस बार अभिमंत्रित करते हैं। तत्पश्चात् स्नात्रपूजा करने वाले पुरुष अभिमंत्रित बलि को जलदान एवं धूपदानपूर्वक चारों दिशाओं में निक्षिप्त करते हैं। फिर स्नात्र करने वाले पुरुष नवीन बिम्ब पर पुष्पांजलि अर्पण करते हैं। इसका वृत्त (छन्द) यह है - “अभिनवसुगंधिवासितपुष्पौघभृता सुधूपगंधाढ्या, बिम्बोपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ।।" तत्पश्चात् गुरु नवीन बिम्ब के आगे दोनों हाथ की मध्य अंगुली को खड़ा करके रौद्रदृष्टि से तर्जनीमुद्रा बताते हैं। फिर बाएँ हाथ से जल लेकर रौद्रदृष्टि से बिम्ब के ऊपर छींटते हैं। कुछ अन्य मतों में स्नात्र करने वाले पुरुष भी बाएँ हाथ में जल लेकर प्रतिमा को सिंचित करते हैं। तत्पश्चात् प्रतिष्ठाकारक गुरु स्नात्र करने वाले पुरुषों के हाथों से बिम्ब को तिलक एवं पूजा करवाते हैं। फिर गुरु बिम्ब को मुद्गरमुद्रा दिखाते हैं। तत्पश्चात् बिम्ब के समक्ष अखंड चावलों से भरा हुआ थाल रखते हैं। वज्रमुद्रा और गरुड़मुद्रा से बिम्ब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy