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________________ स्वरूप वर्णित किया है, वह भी वर्तमान में दिगम्बर परम्परा की क्षुल्लक दीक्षा से भिन्न ही हैं। क्योंकि दिगम्बर परम्परा में क्षुल्लक दीक्षा आजीवन के लिए होती है। साथ ही क्षुल्लक को गृहस्थ के संस्कार करवाने का अधिकार भी नहीं है। यद्यपि क्षुल्लक के जो कार्य वर्धमानसूरि ने बताए हैं, वे कार्य दिगम्बर परम्परा में भट्टारकों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं। गृहस्थ के विधि-विधानों की चर्चा करते हुए, उन्होंने जैन ब्राह्मण एवं क्षुल्लक का बार-बार उल्लेख किया है, इससे ऐसा लगता हैं कि प्रस्तुत कृति के निर्माण में दिगम्बर परम्परा का भी प्रभाव रहा है। स्वयं उन्होंने अपने उपोद्घात में भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि मैंने श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित जीवन्त परम्परा को और उनके ग्रन्थों को देखकर इस ग्रन्थ की रचना की है। वर्धमानसूरि गृहस्थ सम्बन्धी संस्कार हेतु जैन ब्राह्मण की बात करते है, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा में जैन ब्राह्मण की कोई व्यवस्था रही है, ऐसा उस परम्परा के ग्रन्थों से ज्ञात नहीं होता है। संभावना यही है श्वेताम्बर परम्परा शिथिल यतियों के द्वारा वैवाहिक जीवन स्वीकार करने पर मत्थेण, गौरजी महात्मा आदि की जो परम्परा प्रचलित हुई थी और जो गृहस्थों के कुलगुरु का कार्य भी करते थे, वर्धमानसूरि का जैन ब्राह्मण से आशय उन्हीं से होगा। लगभग ५० वर्ष पूर्व तक ये लोग यह कार्य सम्पन्न करवाते थे। इस कृति के तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड में मुनि एवं गृहस्थ दोनों से सम्बन्धित आठ संस्कारों का उल्लेख किया हैं, किन्तु यदि हम गंभीरता से विचार करें तो प्रतिष्ठा विधि, शान्तिक कर्म, पौष्टिक कर्म एवं बलिविधान इन चार का सम्बन्ध मुख्यतः गृहस्थों से है, क्योंकि ये संस्कार गृहस्थों द्वारा और उनके लिए ही सम्पन्न किये जाते है। यद्यपि प्रतिष्ठा विधि की अवश्य कुछ ऐसी क्रियाएँ है, जिन्हें आचार्य या मुनिजन भी सम्पन्न करते हैं। जहाँ तक प्रायश्चित्त विधान का प्रश्न है, हम देखते हैं कि जैन आगमों में और विशेष रूप से छेदसूत्रों यथा व्यवहारसूत्र, निशीथसूत्र, जीतकल्प आदि में और उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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