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आचारदिनकर (खण्ड-३) ___224 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
बुद्धिदेवी की पूजा के लिए निम्न मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा करें -
मूलमंत्र - “ऊँ ऐं धीं बुद्धये नमः ।" “स्फारस्फुरत्स्फटिकनिर्मलदेहवस्त्रा शेषाहिवाहनगतिः पटुदीर्घशोभा।
वीणोरुपुस्तकवराभयभासमानहस्ता सुबुद्धिमधिकां प्रददातु बुद्धिः ।।
“ॐ नमो बुद्धये महापुण्डरीकद्रहवासिन्यै बुद्धे इह पौष्टिके.... .. शेष पूर्ववत्।
लक्ष्मीदेवी की पूजा के लिए निम्न मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा करें -
मूलमंत्र - “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।" “ऐरावणासनगतिः कनकाभवस्त्रदेहा च भूषणकदम्बकशोभमाना। मातंगपद्मयुगलप्रसृतातिकान्तिर्वेदप्रमाणककरा जयतीह लक्ष्मीः।।"
“ऊँ नमो लक्ष्म्यै पुण्डरीकद्रहवासिन्यै लक्ष्मि इह पौष्टिके..... शेष पूर्ववत् ।
तत्पश्चात् निम्न मंत्रपूर्वक सभी देवियों की सामूहिक पूजा करें
“ॐ श्रीं ह्रीं धृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यौ वर्षधरदेव्यः सायुधाः सवाहनाः सपरिच्छदाः इह पौष्टिके आगच्छन्तु-आगच्छन्तु इदमर्थ्य आचमनीयं गृह्णन्तु-गृह्णन्तु सन्निहिता भवन्तु-भवन्तु स्वाहा जलं गृह्णन्तु-गृह्णन्तु गन्धं अक्षतान् फलानि मुद्रां पुष्पं धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृह्णन्तु-गृह्णन्तु शान्तिं कुर्वन्तु-कुर्वन्तु तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुर्वन्तु-कुर्वन्तु सर्वसमीहितानि यच्छन्तु-यच्छन्तु स्वाहा ।"
इस प्रकार पंचम पीट पर षदेवियों (षष्ठी माताओं) की स्थापना एवं पूजा करके प्रत्येक देवी हेतु उसके मूलमंत्र से हवन करें। पौष्टिककर्म में सभी हवन अष्टकोण के अग्निकुंड में, आम्रवृक्ष की समिधाओं तथा इक्षुदण्ड, खजूर, द्राक्षा, घृत और दूध से होते हैं। तत्पश्चात् पूर्व में प्रक्षिप्त की गई पुष्पांजलि वाले जिनबिम्ब पर बृहत्स्नात्रविधि के द्वारा सम्पूर्ण स्नात्रविधि करें। तदनन्तर स्नात्रजल एवं तीर्थों के जल को मिलाकर उस मिश्रित जल के कलश को
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