SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 222 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान पैंतीसवाँ उदय पौष्टिक-कर्म-विधि अब पौष्टिक-कर्म की विधि बताते हैं। वह इस प्रकार है - चंदन से लिप्त पीठ के ऊपर श्री युगादिदेव ऋषभदेव की जिन-प्रतिमा को स्थापित कर पूर्ववत् पूजा करें। यदि आदिनाथ भगवान् का बिम्ब प्राप्त न हो, तो पूर्ववत् किसी भी तीर्थंकर की प्रतिमा में ऋषभदेव के बिम्ब की कल्पना करके बृहत्स्नात्रविधि के अनुसार पच्चीस पुष्पांजलि अर्पण करें। फिर प्रतिमा के आगे पूर्ववत् पाँच पीठ स्थापित कर, प्रथम पीट पर पूर्व की भाँति चौसठ इन्द्रों की स्थापना एवं पूजा करें। द्वितीय पीठ पर पूर्ववत् दिक्पालों की स्थापना करें एवं पूजन करें। तृतीय पीठ पर पूर्ववत् क्षेत्रपाल सहित नवग्रहों की स्थापना एवं पूजा करें। चौथे पीठ पर पहले की तरह ही सोलह विद्या देवियों की स्थापना एवं पूजा करें। पाँचवें पीठ पर षट् द्रह देवियों की स्थापना करें। अब उसकी पूजन विधि बताते हैं - सर्वप्रथम पुष्पांजलि लेकर निम्न छंद से पुष्पांजलि अर्पण करें "श्रीही घृतयः कीर्तिर्बुद्धिर्लक्ष्मीश्च षण्महादेव्यः। पौष्टिक समये संघस्य वांछित पूरयन्तु मुद्रा।।" फिर निम्न मंत्र बोलकर पीठ पर क्रमशः छहों देवियों की स्थापना करें - “ॐ श्रियै नमः ऊँ ह्रियै नमः ॐ घृतये नमः ऊँ कीर्तये नमः ॐ बुद्धये नमः ऊँ लक्ष्म्यै नमः।।" श्रियादेवी की पूजा के लिए निम्न मूल मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा करें - मूलमंत्र - ऊँ श्रीं श्रिये नमः। "अम्भोजयुग्मवरदाभयपूतहस्ता पद्मासना कनकवर्णशरीरवस्त्रा। सर्वांगभूषणधरोपचितांगयष्टि: श्रीः श्रीविलाससमतुलं कलयत्वनेकम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy