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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 220 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान और हाथी, घोड़े आदि वाहनों से साहसपूर्वक अति दूरी तक गमन न करना, दूसरों के घर में जाना आदि कार्यों का राजा को वर्जन करना चाहिएं। मूंगे को धारण करने से मंगल और सूर्यग्रह, चांदी को धारण करने से शुक्रग्रह, स्वर्ण को धारण करने से बुधग्रह, मोती को धारण करने से चन्द्रग्रह, लोहे को धारण करने से शनिग्रह एवं राजावर्त को धारण करने से बृहस्पति आदि अन्य सभी ग्रह संतुष्ट होते हैं । अन्य मतानुसार सूर्यग्रह की शान्ति के लिए माणक, चन्द्रग्रह की शांति के लिए निर्मल मोती, मंगलग्रह की शान्ति के लिए मूंगा, बुधग्रह की शान्ति के लिए मरकत (पन्ना), देवताओं के गुरु बृहस्पति ग्रह की शान्ति के लिए पुखराज, असुर के अमात्य शुक्रग्रह की शान्ति के लिए हीरा, शनिग्रह की शान्ति के लिए नीलम, अन्य ग्रह, अर्थात् राहुग्रह की शान्ति के लिए गोमेध, केतुग्रह की शान्ति के लिए वैडूर्य ( लहसुनिया ) धारण करें। राहु-केतु की शान्ति हेतु शनिवार को पूजा करें । जिस प्रकार कवच के धारण करने पर बाणों के प्रहारों से रक्षा होती है, उसी प्रकार उपर्युक्त रत्नों के धारण करने से ग्रहों के उपघात से शान्ति होती है । नक्षत्रों और ग्रहों की विशेष पूजा में अपेक्षित ग्रह या नक्षत्र को प्रधान रूप से स्थापित करें और उनकी पूजा एवं हवन करें। अन्य नक्षत्रों एवं ग्रहों को परिकर प्रतिष्ठा की भाँति स्थापित करके उनकी पूजा करें। नक्षत्रों और ग्रहों के विसर्जन की विधि पूर्ववत् ही जानें, अर्थात् " यान्तु दे., आज्ञाहीनं. " इत्यादि क्रिया से करें । यह ग्रह - शान्तिक की विधि है । सूर्यादि ग्रहों की स्तुति निम्नांकित है “जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।१।। दध्याभं खण्डकाकारं क्षीरोदधिसमुद्भवम् । नमामि सततं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् । । २ । । धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् || ३ || प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सोमगणोपेतं नमामि शशिनः सुतम् ।।४ ।। देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम् । बुद्धभूतं त्रिलोकस्य प्रणमामि बृहस्पतिम् ।। ५ ।। हेमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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