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आचारदिनकर (खण्ड-३) 201 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान दें। कृतिकानक्षत्र की शान्ति के लिए अग्नि की स्थापना कर पूर्ववत् पूजा कर, तिल, यव एवं घृत से आहुति दें। रोहिणीनक्षत्र की शान्ति के लिए ब्रह्मा की स्थापना कर उसकी पूर्ववत् पूजा कर दर्भसहित तिल, यव एवं घी से आहुति दें। मृगशीर्षनक्षत्र की शान्ति के लिए चंद्र की स्थापना कर पूर्ववत् पूजा कर घृतसहित सर्वौषधियों से हवन करें। आ नक्षत्र की शान्ति के लिए शम्भु (शंकरजी) की स्थापना कर, पूर्ववत् पूजा कर, घृत एवं तिल का हवन करें। पुनर्वसुनक्षत्र की शान्ति के लिए अदिति की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, घृतसहित केसर, लाख, मदयन्ती, मांसी आदि से हवन करें। पुष्यनक्षत्र की शान्ति के लिए बृहस्पति की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, तिल, यव, घृत एवं कुश से होम करें। आश्लेषानक्षत्र की शान्ति के लिए नाग की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, दूध और घी से हवन करें। आश्लेषा में उत्पन्न होने वाले बालक के शान्तिकर्म की विधि मूलनक्षत्र के विधान से जानें। मघानक्षत्र की शान्ति के लिए पितरों की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, घृत मिश्रित तिलपिण्डों से हवन करें। पूर्वाफाल्गुनीनक्षत्र की शान्ति के लिए योनि की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर घृतसहित मधूकपुष्पों (महुए के फूलों) से हवन करें। उत्तराफाल्गुनीनक्षत्र की शान्ति के लिए सूर्य की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, घृत एवं मधुसहित कमलों से हवन करें। हस्तनक्षत्र की शान्ति के लिए सूर्य की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर घृत एवं मधुसहित कमलों से हवन करें। स्वातिनक्षत्र की शान्ति के लिए वायुदेव की स्थापना कर तथा पूर्ववत् पूजा कर, तिल, मधु एवं घृत से हवन करें। विशाखानक्षत्र की शान्ति के लिए इन्द्राग्नि की स्थापना तथा पूजा कर घृत, मधु एवं खीर से या मात्र घी से हवन करें। अनुराधानक्षत्र की शान्ति के लिए सूर्य की पूजा कर, घृत एवं मधुसहित कमलों से हवन करें। ज्येष्ठानक्षत्र की शान्ति के लिए इन्द्र की पूजा कर घृत, मधु एवं खीर से हवन करें। ज्येष्ठानक्षत्र में कन्या या पुत्र का जन्म हुआ हो, तो ज्येष्ठपुरुष घर के मध्य में जाकर कुंभ, ताँबे का चरू, थाल आदि बर्तन विप्र आदि को दान में दे। जब तक दान न दे, तब तक पिता नवजात शिशु का मुख न देखे। यदि यह
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