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आचारदिनकर (खण्ड-३) 196 प्रतिष्टाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
__“ऊँ नमः कार्तिकेयाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय कार्तिकेय इह शान्तिके...... शेष पूर्ववत् । (पुल्लिंग एकवचन में)
क्षेत्रपाल की पूजा पूर्ववत् करें। पुरदेवता की पूजा के लिए निम्न मंत्र बोलें - मूलमंत्र - “ऊँ मं मं नमः पुरदेवाय स्वाहा।"
"ऊँ नमः पुरदेवाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय पुरदेव इह शान्तिके...... शेष पूर्ववत्। (पुल्लिंग एकवचन में)
चतुर्निकाय देवों की पूजा पूर्ववत् करें तथा इस पीठ को आठ हाथ-परिमाण वस्त्र से ढक दें। इस प्रकार सभी की पूजा करके त्रिकोण कुण्ड में हवन करें। पंचपरमेष्ठियों को संतुष्ट करने के लिए खाण्ड (शक्कर), घी तथा खीर से एवं चन्दन तथा श्रीपर्णी की समिधाओं से आहुति दी जाती है। दिक्पालों को संतुष्ट करने के लिए घी, नारियल (मधुफल) तथा वटवृक्ष एवं पीपल की समिधाओं से आहुति दी जाती है। ग्रहों को संतुष्ट करने के लिए दूध, मधु, घी तथा कैर एवं पीपल की समिधाओं से आहुति दी जाती है। क्षेत्रपाल को संतुष्ट करने के लिए तिलपिण्डों एवं धतूरे की समिधाओं से आहुति दी जाती है। पुरदेवता को संतुष्ट करने के लिए घी, गुड़ तथा चम्पकवृक्ष एवं वटवृक्ष की समिधाओं से हवन करें। चतुर्निकाय देवों को संतुष्ट करने के लिए नाना प्रकार के फल, खीर एवं प्राप्त समिधाओं से हवन करें। सभी आहुतियों में आहुति देने का मंत्र ही मूल मंत्र होता है तथा सभी आहुतियों में एक बेंत-परिमाण की समिधाएँ होती हैं। इस प्रकार आहुतिपूर्वक सभी का पूजन करें। पुष्पांजलि प्रक्षेपित करने के तुरन्त बाद बृहत्स्नात्रविधि में जो भी स्नात्र की विधि कही गई है, वही सम्पूर्ण विधि करें। स्नात्र करने के बाद सम्पूर्ण स्नात्रजल को एकत्रित करें और फिर उसमें सर्वतीर्थों के जल को मिलाकर, उसे बिम्ब के आगे अच्छी तरह से लिपी गई भूमि पर या चौकी के ऊपर अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार, मदनफल आदि से युक्त, रक्षासूत्रों से आबद्ध कण्ठ वाले शान्ति कलश को स्थापित करें। सभी जगह रक्षादि का बन्धन शान्तिमंत्र से करें। तत्पश्चात् शान्तिमंत्र द्वारा कलश में सोने, चाँदी की मोहरें, सुपारी एवं नारियल
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