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आचारदिनकर (खण्ड-३) 181 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
वस्त्रादिभिर्वा काष्ठाद्यैः सर्व सौख्यं करोतु मे।।" हाथी-घोड़े आदि की अंबाड़ी की अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें -
“ॐ स्थास्थीं। सर्वावष्टम्भजननं सर्वासनसुखप्रदम् ।
____ पर्याणं वर्यमत्रास्तु शरीरस्य सुखावहम् ।। पादत्राण (जूते, चप्पल आदि)-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र
।
बोलें
“ऊँ सः। काष्ठचर्ममयं पादत्राणं सर्वाघ्रिरक्षणम् ।
नयतान्मां पूर्णकामकारिणी भूमिमुत्तमाम् ।।" सर्व पात्र-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ क्रां। स्वर्णरूप्यताम्रकांस्यकाष्ठमृच्चर्मभाजनम् ।
पानान्नहेतु सर्वाणि वांछितानि प्रयच्छतु।।" सर्व औषधि-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ सुधासुधा। धन्वन्तरिश्च नासत्यौ मुनयोऽत्रिपुरस्सराः ।
अत्रौषधस्य ग्रहणे निघ्नन्तु सकला रुजः।।" मणि-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ वं हं सः। मण्यो वारिधिभवा भूमिभाग समुद्भवाः।
देहिदेहभवाः सन्तु प्रभावात् वांछित प्रदाः।।" दीप-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ॐ जप-जप। सूर्यचन्द्रश्रेणिगतसर्वपापतमोपहः ।
दीपो मे विघ्नसंघातं निहन्त्यान्नित्यपार्वणः।।" भोजन-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - “ॐ हन्तु-हन्तु। पूजादेवबलेः शेष-शेषं च गुरुदानतः।
___ भोजनं ममतृप्त्यर्थं तुष्टिं-पुष्टिं करोतु च ।।" भाण्डागार एवं कोष्ठागार की अधिवासना गृहप्रतिष्ठा-विधि से
जानें।
पुस्तक-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ ऐं। सारस्वतमहाकोशनिलयं चक्षुरुत्तमम्।
श्रुताधारं पुस्तक में मोहध्वान्तं निकृन्ततु।।" जपमाला-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - .
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