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आचारदिनकर (खण्ड-३) 175 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
“ॐ अं अपवारिण्यै नमः।"
तत्पश्चात् शाला के (वरण्डों) की प्रतिष्ठा पूर्ववत् करें। फिर स्तम्भों की निम्न मंत्र से प्रतिष्ठा करें -
"ॐ हीं शेषाय नमः।"
सभी स्तम्भों की प्रतिष्ठा द्वार-विधि के सदृश है। मध्यशाला, द्वार, बाहर के स्तम्भों एवं भित्तियों की प्रतिष्ठा भी पूर्ववत् करें। वहाँ भूमि पर “ऊँ में मध्यदेवतायै नमः" - इस मंत्र द्वारा वासक्षेप से प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात् कमरों की “ऊँ आं श्रीं गर्भश्रिये नमः"- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। उसके द्वारों, भित्तियों, छतों एवं स्तम्भों की प्रतिष्ठा भी पूर्ववत् करें। फिर पाकशाला की “ऊँ श्री अन्नपूर्णायै नमः"- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। कोष्ठागार की प्रतिष्ठा भी इसी मंत्र से करें। इसी प्रकार भाण्डागार की “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः "- मंत्र से, जलागार की "ॐ वं वरुणाय नमः'- मंत्र से, शयनागार की “ॐ शों संवेशिन्यै नमः"- मंत्र से, देवतागार की “ॐ ह्रीं नमः"- मंत्र से, ऊपर की सभी भूमियों की “ॐ आं क्रों किरीटिन्यै नमः'- मंत्र से, हस्तिशाला की “ॐ श्रीं श्रिये नमः"- मंत्र से, अश्वशाला की "ऊँ रे रेवंताय नमः"- मंत्र से, गाय, भैंस, बकरी एवं बैल की शाला की “ऊँ ह्रीं अडनकिलि-किलि स्वाहा"- मंत्र से, सभाभवनों की “ऊँ मुखमण्डिन्यै नमः"- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। इस प्रकार सभी आगारों की पूर्वोक्त विधि से वासक्षेप द्वारा प्रतिष्ठा करें। उनके द्वार, स्तम्भ, छत एवं भित्तियों की प्रतिष्ठा भी पूर्वोक्त विधि से करें। तत्पश्चात् आंगन में आए। वहाँ कलश-प्रतिष्ठा के समान दिक्पालों का आह्वान करके शान्ति हेतु बलि प्रदान करें। तत्पश्चात् हाट की “ऊँ श्री वांछितदायिन्यै नमः "- मंत्र से, मठ की “ऊँ ऐं वाग्वादिन्यै नमः"मंत्र से, आश्रम की “ऊँ ह्रीं ब्लूं सर्वायै नमः"- मंत्र से, धातुनिर्माणशाला की “ॐ भूतधात्र्यै नमः"- मंत्र से, तृणागार की “ॐ शों शांतायै नमः"- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। शास्त्रागार की प्रतिष्ठा पाकशाला के समान तथा परब (प्याऊ) की प्रतिष्ठा पानीशाला के समान ही होती है। हवनशाला की “ऊँ रं अग्नये नमः "- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। इन सभी के द्वार, छत एवं भित्तियों की प्रतिष्ठा भी
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