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आचारदिनकर (खण्ड-३) 158 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिकं-पौष्टिककर्म विधान (सिर पर)। ऊँ ह्रीं नमो भुवन स्वामिनि शिखायां (शिखा पर)। ऊँ ह्रीं नमो विश्वरूपे उदरे (उदर पर)। ऊँ ह्रीं नमः पद्मवासे नाभौ (नाभि पर)। ऊँ ह्रीं नमः कामेश्वरि गुह्ये (गुह्य अंग पर)। ऊँ ह्रीं नमो विश्वोत्तमे ऊर्वो (ऊर्वो पर)। ऊँ ह्रीं नमः स्तम्भिनि जान्वोः (जानु पर)। ॐ ह्रीं नमः सुगमने जंघयोः (जांघ पर)। ऊँ ह्रीं नमः परमपूज्ये पादयोः (पैरों पर)। ऊँ ह्रीं नमः सर्वगामिनि कवचम् (सम्पूर्ण शरीर पर)। ऊँ ह्रीं नमः परमरौद्रि आयुधं।
इस प्रकार गुरु स्वयं के तथा स्नात्रकारों के अंगों की रक्षा करें। तत्पश्चात् निम्न छंदपूर्वक पंचगव्य से देवी को स्नान कराएं -
“विश्वस्यापि पवित्रतां भगवती प्रौढ़ानुभावैर्निजैः संधत्ते कुशलानुबन्धकलिता मामरोपासिता।
तस्याः स्नात्रमिहाधिवासनाविधौ सत्पंचगव्यैः कृतं नो दोषाय महाजनागमकृतः पन्थाः प्रमाणं परम् ।।"
तत्पश्चात् पुष्पांजलि लेकर निम्न छंदपूर्वक पुष्पांजलि दें -
“सर्वाशापरिपूरिणि निजप्रभावैर्यशोभिरपि देवि। आराधनकर्तृणां कर्तय सर्वाणि दुःखानि।।१।।"
इसी प्रकार क्रमशः निम्न सात छंदपूर्वक सात बार पुष्पांजलि अर्पण करें -
___ “यस्या प्रौढ़दृढ़प्रभावविभवैर्वाचंयमाः संयमं निर्दोषं परिपालयन्ति कलयन्त्यन्यत्कलाकौशलम्।
तस्यै नम्रसुरासुरेश्वरशिरः कोटीरतेजश्छटाकोटिस्पृष्ट शुभांघ्रये त्रिजगतां मात्रे नमः सर्वदा।।२।।
न व्याधयो न विपदो न महान्तराया नैवायशांसि न वियोगविचेष्टितानि।
यस्याः प्रसादवशतो बहुभक्ति भाजामाविर्भवन्ति हि कदाचन सास्तु लक्ष्म्यै ।।३।।
दैत्यच्छेदोद्यतायां परमपरमतक्रोधबोधप्रबोधक्रीड़ानिर्दीडपीडाकरणमशरणं वेगतो धारयन्त्या।
लीलाकीलाकर्पूर जनिनिजनिज क्षुत्पिपासा विनाशः क्रव्यादामास यस्यां विजयमविरतं सेश्वरा वस्तनोतु।।४।।
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