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________________ सामाचारी ] । ७७ (५) तप : इच्छाओं का निरोध । (६) संयम : इन्द्रियों का निग्रह । (७) सत्य : सत्य का पालन करना । (८) शौच : पवित्रता । व्रत में दोष नहीं लगने देना ! (६) आकिंचन्य : वाह्य-आभ्यंतर परिग्रह का त्याग । (१०) ब्रह्म : ब्रह्मचर्य का पालन । इन दस प्रकार के धर्म की आराधना में साधुता है । साधुजीवन के ये दसविध धर्म प्राण हैं। इनका वर्णन 'नवतत्व प्रकरण', 'प्रशमरति', 'प्रवचन सारोद्धार', 'बृहत्कल्पसूत्र' इत्यादि अनेक प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध होता है । २५. सामाचारी __ साधुजीवन के परस्पर व्यवहार की आचारसंहिता 'दशविध सामाचारी' नाम से प्रसिद्ध है । 1(१) इच्छाकार : साधु को अपना काम दूसरों से कराना हो तो अगर दूसरे की इच्छा हो तो कराना चाहिए, जबरदस्ती नहीं । इसी तरह दूसरों का काम करने की इच्छा हो तो भी उन्हें पूछकर करना चाहिए। हालांकि निष्प्रयोजन तो दूसरों से अपना काम कराना ही नहीं चाहिए। परंतु अशक्ति, बीमारी, अपंगता आदि कारण से दूसरों से (जो दीक्षा पर्याय में अपने से छोटे हों उनसे) पूछे : 'मेरा यह काम करोगे ?" . इसी तरह सेवाभाव से कर्मनिर्जरा के हेतु से दूसरों का काम स्वयं को करना हो तो भी पूछे 'आपका यह काम मैं कर सकता हूँ ?' (२) मिथ्याकार : साधुजीवन के व्रतनियमों का पालन करने में जाग्रत होते हुए भी अगर कोई गलती हो जाये तो उसकी शुद्धि के लिए 'मिच्छामि दुक्कडं' कहना चाहिए। उदाहरण के लिए, छींक आई और वस्त्र मुह के आगे नहीं रहा, बाद में ध्यान आने पर तुरंत 1. सेव्यः क्षान्तिर्दिवमार्जव-शौचे च संयमत्यागौ । सत्यतपो-ब्रह्माकिञ्चन्यानीत्येष धर्मविधिः ।। --प्रशमरतिः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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