________________
६८ ]
[ ज्ञानसार ४. अस्ति नास्ति प्रवाद | जो ख रशृंगादि पदार्थ विश्व में नहीं हैं और जो ६० लाख पद धर्मास्तिकायादि पदार्थ हैं, उनका वर्णन इस पूर्व
में है । अथवा हर एक पदार्थ का स्व-रुपेण अस्तित्व और पर-रुपेण नास्तित्व प्रतिपादन
किया है। ५. ज्ञान प्रवाद
इस पूर्व में पांच ज्ञान के भेद-प्रभेद, उनका १ क्रोड पद स्वरुप आदि का वर्णन किया गया है ।
[एक कम] ६. सत्य प्रवाद
सत्य यानी संयम, उसका विस्तृत वर्णन इस १ क्रोड ६ पद पूर्व में किया गया है । ७. आत्म प्रवाद
अनेक नयों द्वारा आत्मा के अस्तित्व का और २६ क्रोड पद
आत्मा के स्वरुप का इस पूर्व में वर्णन है । ८. कर्म प्रवाद
ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों के बन्ध, उदय, १ क्रोड ८० लाख पद
| सत्ता आदि का इसमें भेद-प्रभेद के साथ वर्णन है। ९. प्रत्याख्यान प्रवाद
प्रत्याख्यान (पच्चक्खाण) का भेद-प्रभेद के ८४ लाख पद साथ इस पूर्व में वर्णन किया है । १०. विद्या प्रवाद विद्याओं की साधना की प्रक्रियायें और उससे ११ क्रोड १५ हजार
होने वाली सिद्धियों का वर्णन इस पूर्व में है। पद
ज्ञान, तप आदि शुभ योगों की सफलता और ११. कल्याण प्रवाद २६ कोड पद
प्रमाद, निद्रा आदि अशुभ योगों के अशुभ
फल का वर्णन । १२. प्राणायु
इस पूर्व में जीव के दस प्राणों का वर्णन और १ क्रोड ५६ लाख पद | जीवों के आयुष्य का वर्णन किया गया है। १३, क्रिया विशाल इस पूर्व में कायिकी आदि क्रियाओं का उनके ९ क्रोड पद
भेद-प्रभेद के साथ वर्णन किया गया है। १४. लोक बिन्दुसार
| जैसे श्रुतलोक में अक्षर के ऊपर रहा हुआ बिन्दु १२॥ क्रोड पद श्रेष्ठ है उसी तरह 'सर्वाक्षर सन्निपात लब्धि'
प्राप्त करने के इच्छुक साधक के लिए यह | पूर्व सर्वोत्तम है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org