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________________ ज्ञानसार वरण-प्रत्याख्यानावरण लोभ का उपशमन करता है । यह उपशमन होते ही संज्वलन लोभ के बंध का विच्छेद होता है और बादर संज्वलन लोभ के उदय-उदीरणा का विच्छेद होता है । इसके उपरान्त जीव सूक्ष्म संपरायवाला बनता है । (३) किट्टिवेदन-काल दसवें गुणस्थानक का काल है। (अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल है ।) यहाँ दूसरी स्थिति से कुछ किट्टियां ग्रहण करके सूक्ष्म संपराय के काल जितनी प्रथम स्थिति बनाता है और वेदन करता है । समयन्यून दो आवलिका में बंधे हुए दलिक का उपशमन करता है । सूक्ष्म संपराय के अन्तिम समय में संपूर्ण संज्वलन लोभ उपशान्त होता है । आत्मा उपशान्तमोही बनती है । उपशान्तमोह-गुणस्थानक का जघन्यकाल एक समय का है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहर्त का है, इसके बाद वे अवश्य गिरते हैं । पतन : उपशान्तमोही आत्मा का पतन दो तरह से होता है । (१) आयुष्य पूर्ण होने से मृत्यु होती है और अनुत्तर देवलोक में अवश्य जाते हैं । देवलोक में उन्हें प्रथम समय में ही चौथा गुणस्थानक प्राप्त होता है। (२) उपशान्तमोह-गुणस्थानक का काल पूर्ण होने से जो जीव गिरे-वह नीचे किसी भी गुणस्थानक में पहुँच जाता है । दूसरे सास्वादन गुणस्थानक में होकर पहले मिथ्यात्व गुणस्थानक में भी जाता है । उपशम श्रेणी कितनी बार ? - एक जीव को समस्त संसारचक्र में पांच बार उपशम श्रेणी की प्राप्ति होती है । - एक जीव एक भव में ज्यादा से ज्यादा दो बार उपशम श्रेणी प्राप्त कर सकता है । परन्तु जो दो बार उपशम श्रेणी पर चढ़ता है वह इसी भव में क्षपक श्रेणी प्राप्त नहीं कर सकता है। यह मंतव्य कर्मग्रन्थ के रचयिता आचार्यों का है । आगमग्रन्थों का मत है कि एक भव में एक ही श्रेणी प्राप्त कर सकता है । उपशम श्रेणी प्राप्त करनेवाला क्षपक श्रेणी उसी भव में प्राप्त नहीं कर सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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