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________________ १४ ] [ ज्ञानसार (४) सूत्ररुचि : द्वादशांगी का अध्ययन एवं अध्यापन की भावना। 1धर्मध्यान के चार आलंबन हैं । (१) वाचना (२) पृच्छना (३) परावर्तना (४) धर्मकथा अर्थात् सद्गुरु के पास विनयपूर्वक सूत्र का अध्ययन करना । उसमें अगर शंका हो तो विधिपूर्वक गुरूमहाराज के पास जाकर पृच्छा करना। निःशंक बने हुए सूत्रार्थ भूल न जायं इसलिए बार.बार उसका परावर्तन करना और इस प्रकार आत्मसात् हुए सूत्रार्थ का सुपात्र के सामने उपदेश देना । ऐसा करने से धर्मध्यान में स्थिरता प्राप्त होती है । धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षा है : (१) अनित्य भावना (२) अशरण भावना (३) एकत्व भावना और (४) संसार भावना । इन चार भावनाओं का निरन्तर चिन्तन करने से धर्मध्यान उज्जवल बनता है और आत्मसात् हो जाता है । श्री उमास्वाती भगवंत ने 'प्रशमरति' प्रकरण में धर्मध्यान की क्रमशः चार चितन धाराएं बताई हैं : आज्ञाविचयमपायविचयं च सद्धचानयोगमुपसत्य । तस्माद्विपाकविचयमुपयाति संस्थानविचयं च ।। २४७ ।। १ आज्ञाविचय 1'आप्तपुरूष' का वचन ही प्रवचन है । यह है आज्ञा । उस आज्ञा के अर्थ का निर्णय करना विचय है । २ अपायविचय __ मिथ्यात्वादि आश्रवों में, स्त्रीकथादि विकथाओं में, रस-ऋद्धि-शाता गारवों में, क्रोधादि कषायों में, परीषहादि नहीं सहने में आत्मा की १ धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा-वायणा, पुच्छणा, परियट्टणा घम्मकहा । २ धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ-अनित्यत्वाशरणत्वकत्वसंसारानुप्रेक्षाः । __-श्री औपपातिक सूत्रे । १ आप्तवचनं प्रवचनं चाज्ञा, विचयस्तदर्थनिर्णयनम् । २ आस्रवविकथागौरवपरीषहाद्येष्वपायस्तु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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