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विषयक्रम-निर्देश
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पूर्णता हासिल करनी ही है । ऐसा दृढ संकल्प करे तो वह ज्ञान में निमग्न हो सकता है, अतः
क दूसरा अष्टक है मग्नता का ।
ज्ञान में निमग्न ! परब्रह्म में लीन ! आत्मज्ञान में ही मग्नता ! ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर ही जीव की चंचलता - अस्थिरता दूर होती है और वह स्थिर बनता है । अतः मग्नता के पश्चात्
* तीसरा अष्टक है स्थिरता का ।
मन-वचन-काया की स्थिरता । सबसे पहले मानसिक स्थिरता प्राप्त करना आवश्यक है ! तभी क्रिया औषधि का उपयोग है ! स्थिरता का रत्न - दीया प्रज्वलित करते ही मोह-वासनाएँ क्षीण हो सकती है ! इसलिए
* चौथा अष्टक है निर्मोह का !
मोहराजा का एकमेव मंत्र है 'अहं' और 'मम' ! मंत्र जाप से चढे मोह के विष को 'नाहं' ' न मम' के प्रतिपक्षी मंत्र जाप से उतारने का उपदेश दिया गया है । इस तरह मोह का जहर उतरने पर ही ज्ञानी बन सकते हैं, उसके लिए
* पाँचवा अष्टक है ज्ञान का ।
ज्ञान की परिणति होना आवश्यक है | ज्ञान-प्रकाश प्राप्त होना चाहिए ! ज्ञान का अमृत ज्ञान का ही रसायन और ज्ञान - ऐश्वर्य प्राप्त होना चाहिये ! तभी जीव शांत होता है और कषायों का शमन होता है अतः
* छठवाँ अष्टक है शम का ।
किसी प्रकार का विकल्प नहीं और निरंतर आत्मा के शुद्ध स्वभाव का आलम्बन ! ऐसी आत्मा इन्द्रियविजेता बन सकती है अतः
* सातवाँ अष्टक है इन्द्रिय-विजय का ।
विषयों के बंधनों से आत्मा को सदैव कैद रखती इंद्रियों के उपर विजय प्राप्त करने वाले महामुनि ही सच्चे त्यागी बन सकते हैं, इसलिये * मठवाँ अष्टक है त्याग का ।
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