________________
न्यायाचार्य न्यायविशारद महोपाध्याय श्री
यशोविजयजी-विरचित
शौनसार
मल श्लोक, श्लोकार्थ और विवेचन सहित
शिनद्रा
कल्याणमक
श्री विश्व
विवेचनकार
पंन्यासप्रवर श्री भद्रगुप्तविजयजी गणिवर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org