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________________ ध्यान तरह अनियमित संख्या में आराधना की थी। अलबत्त, तमाम आराधनासाधना में ध्याता, ध्येय और ध्यान की एकतास्वरुप 'समापत्ति' तो थी ही। इस के बिना 'तोर्थ कर नामकर्म' बांध नहीं सकते। सिर्फ तपाराधना कर संतोष करने वाले जीवों को अवश्य सोचना चाहिए कि भले ही वे मासक्षमण कर एक-एक स्थानक की आराधना करते हों और नवकारवाली का जाप जपते हों, लेकिन जब तक ध्येय में लीनता नहीं, तब तक तप कप्टक्रिया से अधिक कुछ भी नहीं। देवाधिदेव महावीर देव चार-चार महीने के उपवास जैसी घोर तपस्या कर दिन-रात ध्यानावस्था में लीन रहते थे । ध्याता, ध्येय और ध्यान की एकता साधते थे....। धन्ना अणगार छठ तप के पारणे छठ तप की आराधना करते थे....और राजगह के वैभारगिरि पर ध्यानस्थ रह, 'समापत्ति' साधते थे। ऐसा भी देखा गया है कि जिन-जिनों को मोक्षपद प्राप्त करने की मनीषा नहीं है अथवा जो मोक्षगामी बनने वाले ही नहीं हैं ऐसे जीव भी बीस स्थानकादि तपों की आराधना तो करते रहते हैं....लेकिन उस से क्या होता है ? क्यों कि समापत्ति का फल जो तीर्थ कर नामकर्म है, उन्हें प्राप्त नहीं होता । यदि तपस्या को कोई फल-निष्पत्ति न होती हो तो अकारण ही तपश्चर्या का पुरुषार्थ करने से भला क्या लाभ....? तात्पर्य यही है कि तपश्चर्या के साथ-साथ ध्याता, ध्येय और ध्यान की एकता सिद्ध करना नितान्त आवश्यक है। यदि ऐसी एकता का एकमेव लक्ष्य हो तो एक समय ऐसा आता है जब एकता सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार का लक्ष्य ही न हो तो एकता असंभव ही है। बीस स्थानक की तपश्चर्या के साथ-साथ उन-उन पदों का जाप और ध्यान धरना आवश्यक है ! अर्थात् उन पदो में लीनता प्राप्त करनी चाहिए। यह तभी संभव है जब इच्छा-याकांक्षानों से मुक्ति मिल गयी हो। जब तक हमारा मन भौतिक, सांसारिक पदार्थों की चाह से किलबिलाता रहेगा तब तक ध्येय-लीनता प्रायः असंभव ही है। अत: 'समापत्ति' अत्यंत महत्त्वपूर्ण आराधना है। जितेन्द्रियस्य धीरस्य प्रशांतस्य स्थिरात्मनः ! सुखासनस्थस्य नासाग्रन्यस्तनेत्रस्या योगिनः ॥६॥२३८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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