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ज्ञानसार
आत्मा की चैतन्य अवस्था पूर्णानन्द की कला से जब सशोभित होती है, तब वह शुक्ल पक्ष में प्रवेश करता है । हमारी मात्मा ने शुक्ल पक्ष में प्रवेश किया है या नहीं इसे जानने के लिये महापुरुषों ने पाँच प्रकार की कसौटी बतायी है : १. श्रद्धा, २. अनुकंपा, ३. निर्वेद (जन्म से अनासक्ति), ४. संवेग (मोक्ष-प्रीति), ५. प्रशम । उपर्युक्त पाँच लक्षण कम या अधिक मात्रा में जीवात्मा में पाये जाने पर समझ लेना चाहिए कि उसने शुक्ल पक्ष में प्रवेश कर लिया है ।
श्री दशाश्रुतस्कन्ध चणि में संसार-परिभ्ररण का एक पुद्गल परावर्त काल शेष रह जाए, तब से शुक्ल पक्ष बताया गया है । किरियावादी णियमा भव्वओ, नियमा सुक्कपक्खिओ, अंतो पुग्गलपरियडस्स नियमा सिझिहिति, सम्मविट्ठा वा मिच्छविट्ठा वा होज्ज ।' इसके अनुसार सम्यक्त्व न हो, फिर भी आत्मव दी है, तो वह शुक्ल पक्ष में कहलाता है और एक पुदगल परावर्तकाल में ही वह मोक्षप्राप्ति का अधिकारी बनता है । मतलब, मोक्षगामी बनता है। जीवात्मा के अस्तित्व पर अट श्रद्धा रखे बिना प्रात्मगुणों की पूर्णता का रोमांचक आनंद और अपूर्व शान्ति का अनुभव हो ही नहीं सकता ।
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