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२१. कर्मविपाक-चिन्तन
तुम्हारे अपने सुख और दुःख के कारण जानने के लिए तुम्हें कर्म के तत्त्वज्ञान का अभ्यास करना ही होगा। समस्त विश्व पर जिन कर्मों का जबरदस्त प्रभाव है, उन्हें (कर्मों को) पहचाने बिना नहीं चलेगा । हमारे समस्त सुख और दुःख का मूल प्राधार कर्म ही है । यह सनातन सत्य जान
लेने के पश्चात् हमें अपने सुख-दुःख का ३ निमित्त, भूल कर भी अन्य जीवों को नहीं बनाना चाहिये! प्रस्तुत चिंतन गहरायी से और एकाग्र चित्त से करना ! बीच में ही रुक न जाना, बल्कि पुन:पुनः चिंतन करना ! निःसंदेह तुम्हें अभिनव ज्ञानदृष्टि प्राप्त होगी ।
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