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ज्ञानसार
सिर्फ अपने आपको पहचानो ( Know your self ) जब तुम अपने अापको पहचान लोगे तब दुनिया के श्रेष्ठ सुखी जीव बनते तुम्हें विलंब नहीं लगेगा ! " . योगी ही बनना पडे तो हरि से किसी बात में न्युनता नहीं लगेगी! जब तक योगी नहीं बनेंगे तबतक गली-बाजारों में भटकते भीखारी से भी न्यूनता महसूस होगी ! अतः तुम्हें नित्यप्रति ज्ञान और चारित्र की योग-साधना करनी है ।
या सष्टिब्रह्मणो बाह्या बाह्यापेक्षावलम्बिनी ।
मुनेः परानपेक्षाऽन्तर्गुण सृष्टिः ततोऽधिका ।।७।।१५।। अर्थ : जो ब्रह्मा की सृष्टि है, वह सिर्फ बाह्य जगतरूप है, साथ ही बाह्य
कारण की अपेक्षा रखने वाली है । जब कि मुनिबर की अन्तरंग
गुण-स ष्टि अन्यापेक्षारहित होने से अधिक श्रेष्ठ है । विवेचन : ब्रह्मा सृष्टि के जनक हैं !
___ कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि का सर्जन किया है, लेकिन उनका सर्जन कैसा है ? समस्त जगत का सर्जन पर-सापेक्ष ! अन्य के अवलम्बन पर ही सारा दार-मदार ! इस प्रश्न का निराकरण कहीं नहीं मिलता कि आखिर ब्रह्मा ने ऐसी सृष्टि का सर्जन क्यों किया? किसी ने नन्हेमुन्नों को समझाने की दृष्टि से कहा प्रतीत होता है कि ब्रह्मा के मन में सृष्टिसर्जन का विचार आया और सर्जन कर दिया। लेकिन एकाध बच्चे ने कहीं पूछ लिया होता : 'ब्रह्मा को किसने पैदा किया ?' तब नि:संदेह यह बात प्रचलित न होने पाती कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की है। किसी के गले न उतरे ऐसी यह बात बुद्धिजीवियों ने स्वीकार कर ली है और शास्त्रों ने इसे सिद्ध करने के प्रयत्न किये हैं । 'ब्रह्मा की उत्पत्ति कैसे हुई ?' प्रश्न का जवाब अगर कोई दे दें कि 'ब्रह्मा तो अनादि है !' तब हमें यह मानने में क्या हर्ज है कि 'सृष्टि भी अनादि है !'
जाने दीजिए इस चर्चा को ! हमें सिर्फ विचार करना है मुनिब्रह्मा के सम्बन्ध में । मुनि-ब्रह्मा अंतरंग गुणों की रचना करते हैं, गुण-सृष्टि का सर्जन करते हैं....! उक्त रचना से बाह्य रचना कई गुनी
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