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निमयता
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हम ज्ञानी बनेंगे तभी भय पर विजय पा सकेंगे। उसे अपने नियंत्रण में रख सकेंगे। सचमुच, जिसने भय को भयभीत कर दिया, उस पर विजयश्री प्राप्त कर ली, उसका आनंद अनिर्वचनीय होता है । उसका वर्णन करने में लेखनी असमर्थ है। सिर्फ उसका अनुभव किया जा सकता है ! शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता ! भयाक्रांत मनुष्य उक्त आनन्द और असीम प्रसन्नता की कल्पना तक नहीं कर सकता !
ज्ञानी बनने का अर्थ सिर्फ जानकर बनना नहीं हैं, सौ-पचास बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ लेना मात्र नहीं है । ज्ञानी का मतलब है ज्ञानसमृद्ध होना, निरंतर आसपास में घटित घटनाओं का ज्ञानदृष्टि से सांगोपांग अभ्यास करना, चितन-मनन करना है । ज्ञानदृष्टि से हर प्रसंग का अवलोकन करना । जिसके देखने मात्र से ही अज्ञानी थरथर कांपता हो वहाँ ज्ञानी निश्चल और निष्प्रकम्प रहता है। जिन प्रसंगों के कारण अज्ञानी विलाप करता है, ठंडी आहें भरता है और निश्वास छोड़ अपने कर्मों को कोसता है, वहाँ ज्ञानी पुरूष अतल अथाह जल-राशि सा धीर-गम्भीर और मध्यस्थ बना रहता है ! जिस घटना को निहार अज्ञानी भाग खड़ा होता है, वहाँ ज्ञानी उसका धैर्य के साथ सामना करता है !
_ ऐसे ज्ञान-समृद्ध बनने के लिए पुरूषार्थ करना चाहिए । फल स्वरूप, भय के झंझावात में भी तन-मन की स्वस्थता-निश्चलता को बनाये रख सकेगे, शिव नगरी की ओर प्रयारण करने हेतु समर्थ बनेंगे। ___तात्पर्य यह है कि निर्भयता का मार्ग ज्ञानी-पुरूष ही प्राप्त करते हैं ।
चित्ते परिणतं यस्य चारित्रमकुतोभयम् । __ अखण्डज्ञानराज्यस्य तस्य साधोः कुतो भयम् ॥॥१२६॥ अर्थः जिसके चित्त में जिसको किसी से कोई भय नहीं है, ऐसा चारित्र
परिणत है, उस अखण्ड ज्ञान रुपी राज्य के अधिपति साधु को भला,
भय कसा ? विवेचन : चारित्र!
अभय चारित्र !
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