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विद्या
लेना चाहिए कि हम 'परमात्मा' हैं । तेरहवें या चौदहवें गुणस्थानक पर अधिष्ठित हो गये हैं ।
मानसिक शांति के बिना यानी शोक, मद, मदन, मत्सर, कलह, कदाग्रह, विषाद, और वैरवृत्ति शांत हुए बिना अविद्या भस्मीभूत नहीं होती । मोहान्धता दूर नहीं होती । अतः मन को शांत करना चाहिए, तभी परमात्मदर्शन संभव है। परमात्मऽनुध्येयः सन्निहितो ध्यानतो भवति' !
--अध्यात्मसार संसार के सभी ग्राल-पंपाल को छोड़छाड़ कर, मन को शुभ मालम्बन में स्थिर कर, यदि ध्यान धरा जाय तो मन शांत होता है। शोकादि विकार उपशांत हो जाते हैं । तब आत्मा की ज्योति सहज प्रकाशित हो उठेगी। 'शान्ते मनसि ज्योतिः प्रकाशते शांतमात्मन: सहजम'
आध्यात्मसारे
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