SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ afat भंगिमा, नेत्र कटाक्ष की झपट से वे नेपाल जा पहुँचे ! कोशा के कटाक्ष का वायु उन्हें नेपाल उडा ले गया ! क्योंकि वैषेयिक स्पृहा ने उनमें रही संयमढता, संकल्पशक्ति की दृढता को क्षणार्ध में छिन्न-भिन्न कर मुनिवर को एकाध तिनका और आक की रूई की भाँति हलका जो कर दिया था ! भाषादाभूति के पतन में भी स्पृहा की करूण करामत काम कर गयी ! 'मोदक' की स्पृहा ! जिह्न ेन्द्रिय के विषय की स्पृहा ... यही स्पृहा उन्हें बार-बार अभिनेता के घर खिंच गयी... अभिनेत्रियों के गाढ़ परिचय में आने की हिकमत लड़ा गयी..। स्पृहा ने अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार किया.... मोदक की स्पृहा का विस्तार हुआ.... मदनाक्षी मानिनियों की स्पृहा रंग जमा गयी.... स्पृहा की तूफानी हवा जोरशोर से आत्म- प्रदेश पर सर्वत्र छा गयी । चारों दिशाओं में तहलका मच गया । स्पृहा से हलका बना आषाढाभूति का पामर जीव उस चक्रवात/ आंधी में उडा और सौन्दर्यमयी नारियों / अभिनेत्रियों के प्रांगण में जा गिरा ! एकाध तिनके की तरह तुच्छ बन वह स्पृहा की प्राधी का शिकार बन गया ! ज्ञानसार जिस तरह वेगवान तूफान और तेज श्रांधी मेरूपर्वत को प्रकम्पित नहीं कर सकती, हिला नही सकती, हिमाद्रि की उत्तुंग चोटियो को अपनी गरिमा और अस्मिता से चलित नहीं कर सकती, ठीक उसी तरह योगीश्वर / महापुरुषों की आत्मा मेरूपर्वत की तरह अटल-अचल होती है ! स्पृहा का तूफान उसे विचालिन नहीं कर सकता, ना ही अस्थिर कर सकता है ! अरे, स्पृहा उसके अन्तःस्थल में प्रवेश करने में ही असमर्थ है ! लेकिन यदि स्पृहा प्रवेश करने में समर्थ बन जाए तो संभव है कि उसमें रहो लोह - शक्ति सढश आत्मपरिणति नष्ट होते विलम्ब नही लगता ! जहाँ वह शक्ति नष्ट हो जाती है, वहाँ वायु के वेगवान प्रहार उसे तोड़-फोड़कर भूमिशायी बना देते हैं । प्रायः देखा गया है कि स्पृहावन्त व्यक्ति हलका बन जाता है और वह संसार-समुद्र में डूब जाता है । जब कि वास्तविकता यह है कि हलका ( वजन में कम ) व्यक्ति समुद्र तैर कर पार कर लेता है ! साथ हो हलको वस्तु को हवा का झोंका उड़ा ले जाता है, जब गृहसवन्त को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001715
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy