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११. निर्लेपता
जीव का निर्लेप होना जरुरी है । हृदय को निलिप्त अलिप्त रखना आवश्यक है । राग और द्वेष से लिप्त हृदय की व्यथा और वेदना कहाँ तक रहेगी ? निलिप्त हृदय संसार में रहकर भी मुक्ति का परमानंद उठा सकता है ।
और प्रलिप्तता का एकमात्र उपाय है - भावनाज्ञान । प्रस्तुत अष्टक में तुम्हें भावनाज्ञान की पगडंडी मिल जाएगी । विलंब न करो, किसी को प्रतीक्षा किये बिना इस पगडंडी पर आगे बढ़ो । राग-द्वेष से हृदय को लिप्त न होने दो। इसके लिये श्रावश्यक उपाय और मार्ग तुम्हें इस अष्टक में से मिल जायेंगे । अतः इसका एकचित्त हो, अध्ययन - मनन और चिन्तन करो ।
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