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!! किंचित् वक्तव्य !!
जैन संघ में आचारदिनकर यह अनूठा ग्रंथ है। इसमें वर्णित गृहस्थों के विधि-विधान आज क्वचित् ही प्रचलन में है, साधुओं के आचार के कुछ-कुछ अंश अवश्य ही प्रचलन में है ।
गृहस्थों के विधि-विधान भारत के किसी कोने में किसी सम्प्रदाय में कोई काल में प्रचलित रहे होगे, आज प्रायः नहीं है, साथ ही मूल ग्रंथ भी अनेक स्थानों पर अशुद्धियों से भरा हुआ हैं सो शुद्ध प्रमाणमूल अनुवाद करना अतिदुष्कर है, फिर भी अनुवादिका साध्वीजी ने परिश्रम किया है, यह श्लाघनीय है । आज तक किसी ने इस दिशा में खास प्रयत्न किया नहीं सो इस परिश्रम के लिये साध्वीजी को एवं डॉ. सागरमलजी को धन्यवाद देता हूँ ।
आचारदिनकर की कोई शुद्ध प्रति किसी हस्तप्रति के भण्डार में अवश्यक उपलब्ध होगी, उसकी खोज करनी चाहिये और अजैन ग्रंथों में जहाँ संस्कारों का वर्णन है, उसकी तुलना भी की जाये तो बहुत अच्छा होगा। जैन ग्रंथों में भी मूल ग्रंथ की शुद्धि के लिये मूल पाठों को देखना चाहिये ।
परिश्रम के लिये पुनः धन्यवाद ।
माघशुक्ल अष्टमी, रविवार, सं. २०६२ नंदिग्राम, जिला- वलसाड (गुजरात)
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पूज्यपाद गुरुदेव मुनिराज श्री भुवन विजयान्तेवासी मुनि जंबूविजय
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