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!! हृदयोद्गार !!
आचारदिनकर जैन संस्कारों के विधि-विधानों का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं । पन्द्रहवीं शती का यह ग्रन्थ गृहस्थ के षोडश संस्कारों के साथ-साथ मुनिजीवन से सम्बन्धित विधि-विधानों का एक सन्दर्भ ग्रन्थ हैं। यह समग्र ग्रन्थ मूलतः संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में ही निबद्ध था । हिन्दी या गुजराती भाषा में अनुवादित था ही नहीं । विदुषी साध्वी श्री मोक्षरत्ना श्री जी ने अपने भागीरथ प्रयत्न के द्वारा इस ग्रन्थ का सफलतापूर्वक अनुवाद कार्य संपन्न किया और इस पुस्तक के द्वितीय भाग के प्रकाशन हेतु अर्थ सहयोग करने का जो हमारी सभा को लाभ दिया, इसके लिए हम उनके आभारी हैं ।
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इतनी अल्पवय एवं अल्पसमय में इस विशालकाय ग्रन्थ का अनुवाद कर वास्तव में उन्होंने न केवल जैन साहित्य को एक अनुपम भेंट ही प्रदान की हैं, वरन् हमारे श्रीमाल वंश को भी गौरवान्वित किया हैं । पुनः साध्वी श्री के अथक परिश्रम की हम भूरि-भूरि अनुमोदना करते हैं।
इस ग्रन्थ के अनुवाद के प्रेरक प्रज्ञा-प्रदीप, प्रतिभा सम्पन्न डॉ. सागरमलजी सा. भी अनुमोदना के पात्र हैं। उनके सफल दिशा-निर्देश के परिणामस्वरूप ही आज यह कृति हमारे समक्ष हैं । इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के अनुवाद के संपादन एवं संशोधन कार्य में उन्होंने अपनी पूर्ण विद्वता तथा लगन से योगदान दिया हैं। उनके प्रति शाब्दिक धन्यवाद प्रकट करना, उनके श्रम एवं सहयोग का सम्यक् मूल्यांकन नहीं होगा।
श्रमण समुदाय के लिए विशेष उपयोगी आचारदिनकर के द्वितीय भाग का प्रकाशन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर से हो रहा हैं । आशा हैं, जैन साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में संस्था की ग्रन्थ प्रकाशन की यह परम्परा अक्षुण्ण बनी रहे, इसी मंगल कामना के साथ
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- श्री श्वेताम्बर जैन श्रीमाल सभा मोती डूंगरी रोड, जयपुर
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