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आचारदिनकर (भाग-२)
जैनमुनि जीवन के विधि-विधान
स्थान में स्थित महिमावान् श्रमण भगवान् महावीर को नमस्कार करके कहे - " मैं सर्वथा १. प्राणातिपात २. मृषावाद ३. अदत्तादान ४. मैथुन ५. परिग्रह ६. क्रोध ७. मान ८. माया ६. लोभ १०. राग ११. द्वेष १२. कलह १३. अभ्याख्यान १४. अरतिरति १५. पैशून्य १६. परपरिवाद १७. माया - मृषावाद एवं १८. मिथ्यात्वशल्य इन अट्ठारह पापस्थानकों का तीन योग एवं तीन करण से त्याग करता हूँ।" फिर आहार का सागार प्रत्याख्यान करे “भवचरिमं पच्चक्खाइ तिविहं पि आहारं असणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरामि" - ( यह सागार अनशन प्रत्याख्यान का पाठ है) अथवा निम्न पाठ से अणगार प्रत्याख्यान करे “भवचरिमं पच्चक्खाइ चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरामि" (यह अनागार अनशन प्रत्याख्यान का पाठ हैं ।)
तत्पश्चात् संघ शान्ति के निमित्त " संसार - सागर से पार करने वाले होओ"- ऐसा कहकर उसके समक्ष वासक्षेप एवं अक्षत डाले 1 फिर अनशन किए हुए त्रिविध आहार के प्रत्याख्यानी उस मुनि को केवल गर्म किया हुआ प्रासुक जल ही दें, अन्य कुछ न दें। उसके समक्ष ( यह पाठ करे ) भगवान ऋषभदेव अष्टापद पर, महावीर स्वामी - पावापुरी, वासुपूज्य स्वामी - चम्पापुरी में, नेमिनाथ भगवान गिरनार पर एवं शेष बीस तीर्थंकर सम्मेतशिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए । ऋषभदेव ने चौदह भक्त (छः उपवास) करके, वीरजिन ने छट्टभक्त (बेला) करके एवं शेष बाईस जिनवरों ने तीस उपवास करके निर्वाण को प्राप्त किया। महावीर स्वामी एकाकी, पार्श्वजिन तैंतीस भुनिजनों के साथ, वासुपूज्य छः सौ मुनिजनों के साथ, धर्मनाथ भगवान् आठ सौ मुनिजनों के साथ, पद्मप्रभु तीन सौ आठ मुनिजनों के साथ, शांतिनाथ भगवान् एक सौ आठ मुनिजनों के साथ, विमलनाथ भगवान् छः हजार मुनिजनों के साथ, ऋषभदेव दस हजार मुनिजनों के साथ, अनंतनाथ - सात हजार मुनिजनों के साथ एवं शेष जिन एक - एक हजार मुनिजनों के साथ मोक्ष गए । रोग, वृद्धावस्था एवं मृत्यु रूप तीनों शत्रुओं से यह शरीर कृश होकर विषम
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